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चित्त और मन
अज्ञात की ओर प्रस्थान
___इस अज्ञात और सूक्ष्म व्यक्तित्व के साथ हमारा संपर्क स्थापित हो, जीवन की सफलता के लिए यह अत्यंत अपेक्षित है । वह व्यक्ति सफलता का जीवन नहीं जी सकता, जो केवल स्थूल शरीर के आधार पर सारे निर्णय लेता है। हमारे सामने परिस्थितियां हैं, आनुवंशिकता का प्रश्न है और वैयक्तिक प्रेरणाएं भी हैं। मनोवैज्ञानिक चिकित्सा पद्धति के तीन आयाम हैंआनुवंशिकता, पर्यावरण और व्यक्तिगत संस्कार । इसके साथ चौथा आयाम (डाइमेन्शन) और जोड़ देना चाहिए। वह है कर्म । केवल इन तीन आयामों से व्यक्तित्व की समग्न व्याख्या नहीं हो सकती। कर्म को जोड़ने पर ही समग्र व्याख्या की जा सकती है। आनुवंशिकता (हेरेडिटी) हमारे आचरण और व्यवहार को प्रभावित करती है, व्यक्तित्व को प्रभावित करती है। इसी प्रकार पर्यावरण भी प्रभावित करता है पर सारी बातें उसकी परिधि में नहीं आतीं। प्राणी के अपने जीन्स हैं। उनमें जो निर्देश लिखित हैं, वे केवल आनुवंशिकता के आधार पर ही नहीं होते । उससे भी बड़ी बात एक और है। वह है कर्म । आज के जीन के सिद्धान्त की तुलना यदि कर्म सिद्धान्त से की जाए तो अनेक समस्याओं का समाधान प्राप्त होता है। कर्म के सिद्धान्त को चौथा आयाम या पहला आयाम माना जा सकता है । कर्म है तो आनुवंशिकता है, फिर पर्यावरण और फिर वैयक्तिक प्रेरणाएं। इन चारों के आधार पर यदि जीवन को समझने का प्रयास किया जाए तो आदमी सफल हो सकता है और अनेक समस्याओं का समाधान प्रस्तुत कर सकता है। जीन का सिद्धांत
विज्ञान के क्षेत्र में सोचा जा रहा है कि 'जीन' को बदलने का सूत्र हस्तगत हो जाए तो पूरे व्यक्तित्व को बदला जा सकता है। अध्यात्म के क्षेत्र में बहुत पहले सोचा गया था कि कर्म को बदलने का सूत्र हाथ लग जाए तो बहुत बड़ा काम हो सकता है। मैं समझता हूं, भाव इतना शक्तिशाली साधन है कि उससे कर्म को बदला जा सकता है, जीन को बदला जा सकता है। जो व्यक्ति अनुप्रेक्षा का प्रयोग करना जानता है, जिसने भावपरिवर्तन का प्रयोग किया है, वह अपने 'जीन्स' को भी बदल सकता है और कर्म को भी बदल सकता है। यह बदलने की प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया के माध्यम से समूची चेतना का रूपान्तरण किया जा सकता है और चेतना को नए रूप में प्रस्थापित किया जा सकता है। जीवन और जीव
___ कर्मशास्त्रीय दृष्टि से जीवन का प्रारम्भ माता-पिता के डिम्ब और शुक्राणु के संयोग से होता है किन्तु जीव का प्रारम्भ उनसे नहीं होता।
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