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________________ १८० निःशेषम् दीर्घ श्वास का प्रयोग निर्विचारता का प्रयोग है । यह चिंतन को सीमित करने का प्रयोग है। यदि अच्छा अभ्यास हो जाता है तो जब चाहें चिंतन कर सकते हैं और जब चाहें चितन को रोक सकते हैं । कुछ लोग ऐसे होते हैं कि जिन्हें भाषण देना होता है तो पहले पूरी तैयारी करते हैं । बोलते हैं तो चिंतन के साथ बोलते हैं और भाषण देने के बाद भी चिंतन चलता रहता है । अगर यह कहता तो और अच्छा रहता । यह कहता तो ओर भी अच्छा होता। तीन भाषण हो जाते हैं। एक जनता के सामने आता है, दो अपने मस्तिष्क में रहते हैं। तीन भाषण देने वाले लोग ही मिलेंगे । ऐसे व्यक्ति विरल हैं, जो भाषण से पहले भी चिंतन नहीं करते, भाषणकाल में चितन किया और समाप्त, निःशेषम् । मैंने एक सूत्र बनाया निश्चित होने के लिए — निःशेषम् । हम कोई भी काम करें, गंभीर अध्ययन, गंभीर शोध या गंभीर प्रवृत्ति करें पूरी तन्मयता के साथ करें, उसमें डूब जाएं। जैसे ही उठें, एक बात का संकल्प ले लें - निःशेषम् । बस, मेरा काम पूरा हो गया, कुछ भी बाकी नहीं बचा । हम यदि यह भार लेकर उठते हैं कि इतना काम बाकी रह गया तो काम होगा या नहीं होगा पर दिमाग की शक्ति अवश्य ही खर्च हो जाएगी, तनाव बढ़ जाएगा और वह चिंतन चिंता में बदल जाएगा, कार्य अधूरा रह जाएगा। रावण जैसे शक्तिशाली व्यक्ति ने मरते समय कहा था- मेरी इतनी बातें अधूरी रह गईं । 1 चिन्तन और चिन्ता में भेद एक साधना करने वाला आध्यात्मिक व्यक्ति कह सकता है मेरा कोई काम अधूरा नहीं है, दूसरा कोई व्यक्ति नहीं कह सकता । प्रत्येक आदमी सोचता है कि यह अधूरा रह गया । लड़के को वहां भेजना था, वह अधूरा रह गया। इस अधूरे-अधूरे की बात ने सारे जीवन के रस को सुखा दिया । अन्यथा कितना अच्छा हो, आज हमने किया, सोने से पहले या काम से उठने से पहले, उतना कर लिया । अब कल फिर नया जीवन शुरू करना है । कोई अधूरापन नहीं होगा और वह चिंतन चिंता नहीं बन पाएगा । यदि हम चिंतन और चिंता के भेद को समझ लें तो कोई उलझन नहीं होगी । एक बार आचार्य श्री तुलसी से एक व्यक्ति ने कहा- एक भीड़ आ रही है, जाने क्या होगा ? बहुत भय दिखाया । आचार्यश्री ने एक ही उत्तर दिया- बहुत सुन्दर चार शब्दों का उत्तर - चिंता नहीं, चितन करो । व्यथा नहीं, व्यवस्था करो । सीमित हो चिन्तन चित्त और मन व्यथा करना अलग बात है और व्यवस्था करना अलग बात है । चिंता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003056
Book TitleChitt aur Man
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1990
Total Pages374
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size16 MB
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