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दस
मुनिश्री दुलहराज की कर्मजा शक्ति से निष्पन्न महाप्रज्ञ साहित्य का आकलन/संकलन समणी स्थितप्रज्ञा के श्रद्धासिक्त श्रम का परिणाम चित्त और मन को मिला एक अपूर्व आयाम जो नया भी नहीं है, पुराना भी नहीं है जो नया भी है, पुराना भी है किन्तु है भनुपमेय।
मुनि धनंजयकुमार
१४ जून, १९९० मारवाड़ जंक्शन पाली (राज.)
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