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सम्पादकीय
• अध्यात्म/दर्शन/विज्ञान
योग और मनोविज्ञान के क्षेत्र का उलझा हुआ प्रश्न एक अबूझ पहेली है मन स्वरूप है स्मृति, कल्पना और चिन्तन प्रस्तुत है उसका विशद विवेचन । मन से परे है चित्त का अस्तित्व जिससे बना है हमारा व्यक्तित्व बहुत कुछ और भी है चित्त से परे
उसे भी जानें, गहराई में उतरें। • एक ओर चैतन्य की उपलब्धि का प्रश्न
दूसरी ओर मन की बढ़ती हुई उलझन महाप्रज्ञ कहते हैंसमस्या है मन समाधान है अ-मन मन का विलय करें, अमन बनें सुलझेंगी स्वतः जीवन की उलझनें स्पष्ट होगी चित्त और मन की भेद-रेखा प्राप्त होगा पथ अलौकिक/अनदेखा पूरी होगी अस्तित्व को पाने की चाह बन जाएंगे एक राही ओर राह प्रस्तुत पुस्तक में निर्दिष्ट है उसकी प्रक्रिया और दर्शन
जीवन के अनसुलझे प्रश्नों का मार्मिक विश्लेषण । • हम पढ़ें चित्त और मन
इसमें संदृब्ध है जैन मनोविज्ञान फायड और यूंग की परम्परा को महाप्रज्ञ का अवदान
मनोविज्ञान/मनोवैज्ञानिक के लिए एक नया प्रस्थान । • आचार्य श्री तुलसी की अमोघ प्रेरणा/आशीर्वचन
महाप्रज्ञ की प्रज्ञा से निःसृत चिन्तन-मन्थन
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