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व्यक्तित्व के विविध रूप
८५ करने वाले तो दूसरे के हाथ का खिलौना है । जो प्रतिक्रिया का जीवन जीता है, वह कठपुतली है, खिलौना है।
कहानी तो बच्चों की है, पर है बड़ी मार्मिक । बाप और बेटे दोनों घोड़े पर चढ़कर जा रहे थे। लोग मिले, बोले, 'देखो, मरियल घोड़ा और ऊपर बैठे हैं दो आदमी।' तत्काल पिता के मन में प्रतिक्रिया हुई, वह नीचे उतर गया। अपना कोई चिंतन नहीं था। जब चढ़ा, तब चिंतन के साथ ही चढ़ना था। अब लोगों ने कहा, वह नीचे उतर गया। बाप-बेटा थोड़ा आगे गए। दूसरे लोग मिले, बोले, 'देखो, कैसा जमाना आया है, लड़का जवान है, ऊपर बैठा जा रहा है। बाप बेचारा जूते घिसते-घिसते चल रहा है।' काफी व्यंग्य कसा तो लड़का नीचे उतर गया और बाप ऊपर चढ़ गया। थोड़ा आगे चले। लोग मिले, बोले, 'देखो, बड़ी विचित्र बात है कि बाप तो ऊपर बैठा है और बेचारा छोकरा नीचे चल रहा है।' यह सुनकर बाप भी नीचे उतर गया। दोनों उतर गए, दोनों घोड़े
की लगाम थामे पैदल चलने लगे। थोड़ा आगे चले, आदमी मिले, बोले, 'देखो, कितने मूर्ख हैं! घोड़ा तो खाली चल रहा है, ये पैदल चले आ रहे हैं।'
अब क्या करें? प्रतिक्रिया का जीवन जीने वाला कहाँ जाए? जाने का रास्ता नहीं बचता। सारे रास्ते बंद हो जाते हैं। इतना विचित्र चिंतन और विचित्र बातें आती हैं कि मन कहीं टिक नहीं पाता।
एक व्यक्ति नया-नया ही संन्यासी बना था। उसी गाँव का था। तालाब के किनारे डेरा जमाए बैठा था। एक दिन सो रहा था। सिरहाने ईंट रखी हुई थी। महिलाएँ पानी लाने तालाब पर जा रही थीं। एक महिला बोली, 'देखो, संन्यासी बन गया तो क्या हुआ। अभी सिरहाने का मोह नहीं छूटा और कुछ नहीं तो ईंट को ही सिरहाना दे रखा है।' संन्यासी ने सुना और सोचा कि मैंने ठीक नहीं किया। उसने ईंट निकाल दी और बिना सिरहाने दिए ही सो गया। बहिनें पानी लेकर वापस
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