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________________ लोग जानना चाहते हैं, मेरे जीवन के बारे में, मेरे विकास के बारे में। पूछते हैं कि आपने | इतना अधिक कैसे लिखा? इतना विकास | कैसे किया ? मैं बताना चाहता हूं कि मुझे एक सूत्र मिला और यह सूत्र मेरे जीवन में सहज व्याप्त हो गया। वह सत्र है-प्रतिक्रिया से मुक्त रहना। तु का चक्र बदलता रहता है। समय बदलता रहता है, परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं। प्रश्न है, केवल ऋतुचक्र ही बदलता है या मनुष्य भी बदलता है? इस संसार में कोई भी तत्त्व ऐसा नहीं है, जिसमे परिवर्तन न होता हो। प्रत्येक तत्त्व में परिवर्तन होता है। मनुष्य भी सदा एकरूप नहीं रहता। वह जन्मता है, बच्चा होता है, किशोर बनता है, युवा बनता है, प्रौढ़ बनता है और बूढ़ा बनता है। नए-नए रूप बदलता जाता है। यह एक स्थूल बात है। एक दिन में आदमी कितना बदलता है, चौबीस घंटों में कितना बदलता है? यह स्थूल बात है। प्रति सैकंड आदमी बदलता रहता है और इस बदलाव का मुख्य हेतु बनता है मन । मन की स्थिति बदलती है तो आदमी में भी बदलाव होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003054
Book TitleJo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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