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________________ १५ समता की दृष्टि संभिन्नस्त्रोतोलब्धि इससे भी आगे की बात जैनाचार्यों ने प्रतिपादित की है। उन्होंने एक यौगिक विभूति का उल्लेख किया है, जिसकी संज्ञा है ‘संभिन्नस्त्रोतोलब्धि' । यह एक ऐसी लब्धि है, जिससे सारा शरीर 'करण' बन जाता है, इंद्रिय बन जाता है। फिर यह स्थूल विभाग की बात व्यर्थ हो जाती है कि आँख ही देख सकती है, कान ही सुन सकता है। इस विभूति के प्रकट होने पर शरीर का प्रत्येक अवयव पाँचों इंद्रियों का काम करने लग जाता है। समूचा शरीर देख सकता है, समूचा शरीर सुन सकता हैं। कुछ लड़कियाँ अंगुलियों से पढ़ सकती हैं, आँख का काम अंगुलियों से कर सकती हैं। इस बात से अनेक वैज्ञानिकों को आश्चर्य होता है। प्रत्यक्ष को नकारा नहीं जा सकता। वे यह भी नहीं कह सकते कि अंगुलियों से नहीं पढ़ा जा सकता। किन्तु क्यों और कैसे पढ़ा जाता है, इसकी व्याख्या वे नहीं कर सकते। यह विषय अभी विज्ञान से परे है। वैज्ञानिक इसे समझने का प्रयास कर रहे हैं, परन्तु यह तथ्य हजारों वर्षों पूर्व स्वीकृत हो चुका है कि समूचा शरीर प्रत्येक इंद्रिय का काम कर सकता है। एक इंद्रिय से पाँचों इंद्रियों का काम लिया जा सकता है या पूरे शरीर से किसी भी इंद्रिय का काम लिया जा सकता है। व्यक्त एवं अव्यक्त ____ व्यक्त पर्याय का भेद या ऊपर से प्रतीत होने वाला भेद तब मिट जाता है, जब व्यक्ति गहराई में जाता है, सूक्ष्म नियम की खोज करता है। जब पैठ गहरी होती है, तब सारे नियम टूट जाते हैं। व्यक्त जगत के नियम भिन्न होते हैं और अव्यक्त जगत के नियम सर्वथा भिन्न होते हैं। कठिनाई यह है कि हम अव्यक्त की व्याख्या व्यक्त के द्वारा एवं व्यक्त की व्याख्या केवल व्यक्त के द्वारा ही करना चाहते हैं। हम इस बात को भूल जाते हैं या अस्वीकार कर देते हैं कि यह संसार बहुत छोटा है। यह केवल ऊर्मियों का संसार है, केवल तरंगों का संसार है। इन तरंगों के नीचे सत्य का विराट और अनंत महासागर है, लेकिन इस ओर हमारा ध्यान ही नहीं जाता। हम केवल गहरे असत्य में, गहरे अंधकार में चले जाते हैं। अनेकांत ने सावधान करते हुए कहा है कि ऐसा मत करो। केवल व्यक्त के आधार पर पूर्ण सत्य की कल्पना का अहंकार मत करो। मनुष्य व्यक्त के धरातल पर जीता है, इसलिए जो पर्याय वर्तमान की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003054
Book TitleJo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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