SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 8
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ... (६) अवस्था से ही रहने का अवसर प्राप्त हुआ, यह मेरा परम सौभाग्य है। मैं केवल उनके सान्निध्य में ही नहीं रहा, आज जो कुछ भी हूं उनकी ही वजह से हूं। उन्होंने मुझे सन् २००६ भिवानी चातुर्मास में मीडिया का कार्य सौंपा। मैं खुद इस बात से अचंभित था, क्योंकि मीडिया से मेरा कोई ताल्लुक नहीं था। बिल्कुल अनजान शिष्य को ऐसा काम सौंपना और उसमें दक्षता की ओर बढ़ा देना, यह एक महान् गुरु ही कर सकता है। उनके विश्वास ने ही मुझे मीडिया से जुड़े लोगों में पैठ बनाने की शक्ति दी और लेखन में प्राण भरे। ___सन् २००६ से ९ मई २०१० तक अनेक विषयों पर मीडिया में उनके विचार, आलेख प्रसारित हुए। पर कभी सोचा नहीं था, उन आलेखों की पुस्तक प्रकाशित होगी। एक बार अशोकजी संचेती से बात हो रही थी। उन्होंने बताया कि मेरे द्वारा पूर्व में 'महाप्रज्ञ फिचर्स' नाम से आचायश्री के आलेख मीडिया वालों तक पहुंचाए गये हैं। इस बात को सुनने के बाद मेरे मन में आया कि उन आलेखों को देखा जाये। मैंने अशोकजी से कहा कि वे फिचर्स मुझे मिल जाएं तो उन आलेखों को उपयोग में लिया जा सकता है। उन्होंने वे उपलब्ध करवाए, मैंने उनका अध्ययन किया, उस अध्ययन के बीच एक विचार आया कि आचार्यप्रवर का ९१वां जन्म दिवस सामने है, उस अवसर पर एक विशेष उपहार समर्पित करना चाहिए। वह उपहार क्या हो, इस पर भी अनेक दिनों तक चिन्तन किया। अंत में उन आलेखों की पुस्तक तैयार कर सरप्राईज के तौर पर प्रस्तुत करने का मानस बना। मैंने पुस्तक के सन्दर्भ में संचेतीजी से बात की, वह भी इस विचार से सहमत थे। उस पर काम चालू हुआ। मोमासर प्रवास में कम्पोज मैटर मेरे हाथों में था। पर उस दौरान ज्यादा कुछ काम नहीं हो सका। सरदारशहर में प्रवेश होने के बाद भी जो रूकावटें आ रही थीं उनका समाधान नहीं हुआ। मेरी इच्छा जो सरप्राईज देने की थी, वह पूरी होती नहीं लग रही थी। नौ मई सूर्योदय से पूर्व मैंने आचार्यप्रवर को सारी योजना निवेदित की। मेरे स्वयं के अभी तक समझ में नहीं आ रहा है कि वे सब बातें उस दिन मुंह से कैसे निकल गई। आचार्यवर ने सब कुछ सुनने के बाद प्रसन्न मुद्रा में फरमाया कार्य बहुत अच्छा है, तुम इसको करो, सब ठीक हो जायेगा। ऐसा सुनकर मैं निश्चिंत हो गया। नया उत्साह जगा। पर उसी दिन दोपहर के दो बजकर बावन मिनट पर आचार्यप्रवर इस संसार को अलविदा कह गए। कार्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003054
Book TitleJo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy