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________________ समता की दृष्टि मध्यरात्रि का समय | नीरव वातावरण । एकांत और शांति की स्थिति । चुलनीपिता धर्म ध्यान में लीन बैठा है। अकस्मात उसे प्रतीत हुआ कि एक देव सामने प्रकट हुआ है। "देव ने कहा, 'देवानुप्रिय ! क्या कर रहे हो ? ध्यान-साधना को छोड़ दो। इससे कुछ भी होना-जाना नहीं है।' चुलनीपिता शांत और सहज बैठा रहा। देव ने दो-तीन बार कहा, पर चुलनीपिता फिर भी मौन और शांत । देव फिर बोला, 'सुन नहीं रहे हो ? छोड़ दो ध्यान को। साधना को तिलांजलि देकर चले जाओ। अगर तुम मेरी बात नहीं मानोगे, तो तुम्हें उसका बुर: परिणाम भुगतना होगा। वह परिणाम बहुत भयंकर होगा । उठो, चले जाओ अपने घर ।' चुलनीपिता इस बार भी अडोल, अप्रकम्प और अविचलित बैठा रहा। देव बोला, 'तुम नहीं मानते हो तो लो, मैं अभी तुम्हारे ज्येष्ठ पुत्र को तुम्हारे सामने लाकर मारता हूँ। उसके टुकड़े-टुकड़े कर कड़ाही में डालता हूँ और उसी रक्त से तुम्हारे शरीर का सिंचन करता हूँ।' पर चुलनीपिता अप्रकम्प, अडोल और अभय । देव गया, ज्येष्ठ पुत्र को घसीटकर घर से निकाल लाया और उसे चुलनीपिता के पास पटका, मारा, टुकड़े-टुकड़े कर कड़ाही में तला और फिर उसके रक्त से चुलनीपिता के शरीर को सींचा। इतना होने पर भी चुलनीपिता अविचलित रहा । वह अपनी ध्यान की साधना में लगा रहा। देव बोला, 'बड़े मूर्ख और निर्मम हो ! एक ओर धार्मिक आराधना का ढोंग कर रहे हो, दूसरी ओर करुणा का स्रोत सूखता जा रहा है। धार्मिक वह होता है, जिसमें करुणा होती है। बेटा तड़प-तड़प कर मर रहा है और तुम इतने निष्ठुर हो कि उसे बचाने के लिए भी नहीं उठे। अच्छा, अब भी मान जाओ । अन्यथा मैं तुम्हारे दो और पुत्रों की भी वही दशा करूँगा, जो पहले पुत्र की कर चुका हूँ । छोड़ दो धर्म-कर्म को । जाओ, अपने पुत्र की रक्षा करो।' Jain Education International ६७ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003054
Book TitleJo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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