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जो सहता है, वही रहता है विरोधी युगल होना चाहिए। समूची प्रकृति में, समूची व्यवस्था में विरोधी युगलों का अस्तित्व है। ज्ञान है तो अज्ञान भी है। दर्शन है, तो अदर्शन है, सुख है तो दुःख भी है। मूर्छा है, जागरण है। जीवन है, मृत्यु है। शुभ है, अशुभ है।
हमारा जीवन विरोधी युगलों के आधार पर चलता है। विरोधी युगलों के समाप्त हो जाने पर जीवन भी समाप्त हो जाएगा। हठयोग के आधार पर जीवन की व्याख्या है-प्राण और अपान का योग। प्राणधारा के पाँच प्रकार हैं। उनमें एक है प्राण और एक है अपान । प्राण ऊपर से नीचे जाता है, नाभि तक उसके स्पंदन जाते हैं। अपान नीचे से नाभि तक आता है। जब तक ये विरोधी धाराएँ बनी रहती हैं, तब तक जीवन है। जब यह क्रम टूट जाता है, तब जीवन भी टूट जाता है। जीवन का टूट जाना या मृत्यु का घटित हो जाना, इसका अर्थ है प्राण और अपान का बाहर निकल जाना। विरोधी दिशाओं के समाप्त हो जाने से जीवन समाप्त हो जाता है। विरोधी प्रवाह
शरीर में दो केन्द्र हैं। पहला है, ज्ञान केन्द्र और दूसरा है, काम केन्द्र। दोनों ही विरोधी हैं। काम केन्द्र चेतना को नीचे ले जाता है और ज्ञान केन्द्र उसे ऊपर ले जाता है। एक है अधोगमन और दूसरा है ऊर्ध्वगमन । चेतना का नीचे अवतरण और चेतना का ऊर्ध्व अवतरण, दोनों विरोधी हैं। विज्ञान की दृष्टि से
विज्ञान की भाषा में इन्हीं दो केन्द्रों के वाचक दो ग्लैण्ड्स हैं। एक है पिनियल, पिच्यूटरी ग्लैण्ड और दूसरा है गोनाड्स । पिनियल और पिच्यूटरी, ये दोनों ज्ञान के विकास की ग्रंथियाँ हैं। गोनाड्स काम विकास ग्रंथि है। हमारी चेतना का विकास पिनियल और पिच्यूटरी के विकास पर निर्भर है। पिच्यूटरी और पिनियल का स्राव जब गोनाड्स को मिलता है, तब काम की उत्तेजना बढ़ती है। जब वह स्राव बदलता है, हाइपोथेलेमस की क्रिया बदलती है, तब ज्ञान का विकास होने लग जाता है।
दोनों विरोधी बातें हमारे शरीर की संरचना में समाई हुई हैं। दोनों ग्रंथियाँ अपना-अपना काम करती हैं। दोनों की क्रियाएँ विरोधी हैं, एक दूसरे को
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