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________________ जो सहता है, वही रहता है तत्त्वों को निर्देश मिला, मांसपेशियाँ सक्रिय हुईं और हाथ काँटा निकालने के लिए वहाँ पहुँच गया। यह है क्रिया और प्रतिक्रिया का सिद्धान्त । जहाँ क्रिया होगी, वहाँ प्रतिक्रिया अवश्य होगी। हम प्रतिक्रिया से बच भी नहीं सकते, किन्तु जो प्रतिक्रियाएँ हमारे हितों का संरक्षण नहीं करती, वे अहित की ओर ले जाती हैं। हमारे लक्ष्य के पथ में विघ्न और बाधा उपस्थित करती हैं, हमारी आदतों को विकृत बनाती हैं। उनसे बचना बहुत जरूरी है। यदि प्रतिक्रिया को स्वाभाविक मानकर बैठ जाएँ तो बड़ी कठिनाई पैदा हो जाएगी। अनेक लोग यही तो मानते हैं कि गाली देने पर गुस्सा आना स्वाभाविक बात है। गुस्सा आए, यह स्वाभाविक है और न आए, तो वह अच्छा आदमी नहीं है। उसके लिए समझा जाता है कि यह तो दब्बू , डरपोक और कमजोर आदमी है। ऐसा प्रसंग आए और आदमी चुप रह जाए, यह कैसा आदमी है? हर प्रतिक्रिया को स्वाभाविक मान लेना भी अनुचित है। हमें विवेक से काम लेना चाहिए। जो प्रतिक्रियाएँ जीवनयात्रा में स्वाभाविक हैं, उनके लिए चिंतन करने की और उन्हें बदलने की आवश्यकता नहीं है। किन्तु वे प्रतिक्रियाएँ, जो स्वाभाविक नहीं हैं, केवल मान्यतावश या धारणावश फलित हो रही हैं, उनसे बचना हमारे लिए आवश्यक है। कैसे बचें? यह बड़ा जटिल प्रश्न है, क्योंकि अब वे आदतें बन गई हैं और मस्तिष्क में ऐसी संरचना बन चुकी है कि यह स्थिति होने पर, वह स्थिति अनायास हो जाती है। न चाहने पर भी हो जाती है। पुष्ट आलंबन मैंने एक प्रश्न उपस्थित किया था कि प्रकाश के लिए प्रयत्न किया जाता है, अंधकार के लिए कोई प्रयत्न नहीं करना होता, पर प्रकाश तो चला जाता है और अंधकार वहीं रह जाता है। क्षमा के लिए बहुत प्रयत्न किया जाता है, समय आने पर क्षमा की बात भुला दी जाती है और क्रोध सहज ही उभर आता है। ये स्थितियाँ स्वतः उभरती हैं। इनसे कैसे बचा जाए? इनसे बचने के लिए पुष्ट आलंबन की आवश्यकता है। जैन आचार्यों ने एक शब्द का चुनाव किया-पुष्ट आलंबन । आलंबन और पुष्ट आलंबन, ये दो होते हैं। सहारा चाहिए। सहारा भी मामूली नहीं, गली (बहाना) निकालने वाला नहीं। आलंबन भी पुष्ट चाहिए। यह गली निकालने की बात तो बहुत कमजोरी की बात होती है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003054
Book TitleJo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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