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________________ ५ जीवन में परिवर्तन मैं चोर के घर ठहरा था। रात के समय चोर चोरी करने जाता। जब वह वापस लौटता, तब मैं पूछता, कुछ मिला? वह कहता, कुछ नहीं मिला। आज खाली हाथ लौटा हूँ, कल मिल जाएगा। दूसरे, तीसरे दिन मैं यही पूछता गया। वह कहता कि आज भी कुछ नहीं मिला, खाली हाथ लौटा हूँ। कल कुछ मिल जाएगा। इस प्रकार पूरा एक महीना बीत गया। एक महीने तक चोर को कुछ नहीं मिला। मैंने सोचा, चोर रोज चोरी करने जाता है। सात-आठ घंटे बिताता है। अपनी नींद का मीठा समय खोता है। चोरी में कुछ नहीं मिलता। पूरा एक महीना हो गया। पर उसमें निराशा का भाव नहीं आया। वह सदा कहता है, आज नहीं तो कल अवश्य मिलेगा। मैंने सोचा, चोर में इतना धैर्य है कि वह खाली हाथ लौटने पर निराश नहीं हुआ। यह देखकर मैंने उससे सीखा कि भक्ति के मार्ग में कभी निराश नहीं होना है। अच्छा काम करते हुए कभी निराश नहीं होना है।' मनुष्य की प्रकृति विचित्र है। अच्छा काम करने वाला जल्दी निराश हो जाता है और बुरा काम करने वाला निराश नहीं होता। चोर, लुटेरे, डाकू कहाँ निराश होते हैं? यह एक तथ्य है, सच्चाई है। मैंने चिंतन किया और इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि आदमी की जितनी गहरी आस्था बुराई में होती है, उतनी अच्छाई में नहीं होती। अच्छाई में उतनी गहरी आस्था संपादित करने के लिए बहत साधना की आवश्यकता होती है। जहाँ आस्था नहीं होती, वहाँ निराशा हो जाती है। बुराई और आस्था का इतना गहरा संबंध है कि आदमी बुराई के रास्ते पर चलता है और स्वतः उस रास्ते पर उसकी आस्था जमती चली जाती है। बहुत प्रयत्न करने की जरूरत ही नहीं रहती। बिना कुछ साधना किए ही आस्था अनुबंध हो जाता है। भलाई के रास्ते पर आस्था का जमना, आस्था का अनुबंध होना बहुत कठिन होता है। हम कैसे सोचें? हमारा सोचने का तरीका क्या हो? इसे जानना इसलिए जरूरी है कि निषेधात्मक दृष्टि से चिंतन करने वाला व्यक्ति हर सच्चाई को नकारता चला जाता है और विधायक दृष्टि से चिंतन करने वाला व्यक्ति सच्चाई के पास पहुँच जाता है, सच्चाई को उपलब्ध हो जाता है और वह अनेक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003054
Book TitleJo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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