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________________ ३६ जो सहता है, वही रहता है निर्विचार का अनुभव शब्दातीत होता है और उसमें उस चेतना का जागरण होता है, जो चेतना इंद्रियों से, मन से, बुद्धि से और विवेक से परे है। सबसे परे की चेतना अतीन्द्रिय चेतना की अवस्था बन जाती है। वहाँ केवल आत्मा का अनुभव शेष रहता है। बाकी स्मृतियाँ लुप्त हो जाती हैं। यह एक ऐसी अवस्था है, जिसकी चर्चा शब्दों में नहीं हो सकती । यह अनुभव का विषय है। बुद्धि की सीमा का जो विषय है, वह शब्दों द्वारा प्रतिपादित किया जा सकता है। जो बुद्धि से परे का संसार है, वह शब्दातीत होता है । उसके बारे में कहा जाए तो भी कुछ नहीं बनता और न कहें तो भी मन नहीं मानता। कहने और न कहने की दोनों स्थितियों में आदमी उलझा रहता है । हमारा संसार बुद्धि और विचारों का संसार है । वहाँ अनेक बातें होती हैं, विरोधाभास होते हैं। जितना विरोधाभास वैचारिक संसार में है, उतना कहीं नहीं होता । चर्चिल ने कहा था कि कुशल राजनीतिज्ञ वह होता है, जो सुबह एक बात कहता है और शाम को यह कहकर उसका खंडन कर देता है कि सुबह जो कहा था, वह ठीक था और अब जो कह रहा हूँ, वह भी ठीक है । विचार के क्षेत्र में विरोधाभासों को टाला नहीं जा सकता । तर्कशास्त्र में स्थान-स्थान पर कहा गया है कि यहाँ अमुक बात का विरोधाभास है । जब शास्त्र ही तर्क का है, जहाँ विचार ही कर रहे हैं, तो विरोधाभास अवश्य आएगा । गर्भवती माँ ने छोटे मुन्ने से पूछा, 'तुम क्या चाहते हो, मुन्ना या मुन्नी ?' छोटा बच्चा था, बोला, 'माँ, तुम्हें कष्ट न हो तो छोटा-सा पिल्ला चाहिए, न मुन्ना और न मुन्नी ।' यह कहाँ से आएगा? जो है नहीं, वह नहीं आ सकता। जो होगा, वही आएगा । विचार का काम है, संगति, विसंगति, विरोध और अविरोध पैदा करना । कोई भी विचार, बुद्धि या तर्क ऐसा नहीं हो सकता जो केवल अविरोध पैदा करे या केवल संगति या सामंजस्य पैदा करे। यह नहीं हो सकता कि जो चलता है, वह सदा चलता ही रहे, लड़खड़ाए नहीं। जो चलता है, वह लड़खड़ाता है । जो घोड़े पर चढ़ता है, वह गिरता भी है । चलना और लड़खड़ाना, चढ़ना और गिरना, दोनों साथ जुड़े हुए हैं। विचार की इस द्वन्द्वात्मक दुनिया में हम एक बात की अपेक्षा रखें कि यही होगा, वह नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003054
Book TitleJo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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