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जीवन में परिवर्तन है कि मैं बड़ा मजबूत आदमी हूँ, मैं पकड़ी हुई एक बात को नहीं छोड़ता। अरे, क्या बड़ा काम कर दिया? यह तो मूर्खता है। पत्थर बहुत मजबूत होता है। हड्डी बहुत मजबूत हो जाती है, तो बहुत खतरनाक होती है। हड्डियाँ लचीली रहती हैं, तो आदमी स्वस्थ रहता है। बीमारी का पहला लक्षण है हड्डियों का कठोर हो जाना। रीढ़ की हड्डी अकड़ गई, कड़ी पड़ गई, तो मान लें कि स्वास्थ्य चला गया। इसलिए एक बात पर डट जाना, कोई विशेषता की बात नहीं है, परन्तु कभी-कभी ऐसा भी होता है कि आदमी मूर्खता की बात को भी बहुत विशेषतायुक्त मान लेता है। सम्यक् विचार और सम्यक् चिंतन नहीं होता है, तो अनेक व्यक्ति गलत बात को सही मान लेते हैं, मूर्खता को समझदारी मान लेते हैं। आश्चर्य की बात यह है कि उन्हें मालूम भी नहीं होता कि वे मूर्खता कर रहे हैं। बहुत लोग ऐसे होते हैं जिन्हें अपनी मूर्खता का कभी पता ही नहीं चलता।
दो सहेलियाँ मिलीं। बातें चलने लगीं। एक सहेली ने दूसरी से कहा, 'आजकल औरतें अपने पतियों की निंदा बहुत करती हैं। निंदा करना बहुत बुरा है। ऐसा नहीं करना चाहिए। मुझे देखो, मेरा पति कितना आलसी, नालायक और महामूर्ख है, पर मैं कभी किसी को नहीं बताती कि मेरा पति ऐसा है।'
अजीब स्थिति होती है हमारे चिंतन की। जो विचार का संसार है, वहाँ विरोधाभास पलते हैं, वहाँ विसंगतियाँ पलती हैं। वहाँ समझदारी की ओट में मूर्खता पलती है। यह विचार का क्षेत्र है। अविचार में तो ऐसा नहीं होता। तीन स्थितियाँ हैं-अविचार, विचार और निर्विचार।
अविचार की स्थिति वह है, जिसमें व्यक्ति चिंतन करना जानता ही नहीं। छोटे प्राणी हैं, वे चिंतन करना नहीं जानते। मनुष्य में भी कुछ ऐसे मनुष्य हैं, जिनका मस्तिष्क अविकसित होता है। वे विचार करना नहीं जानते। यह विचार की अक्षमता ही अविचार है।
दूसरी अवस्था है-विचार। इस अवस्था में प्राणी चिंतन करता है, सोचता है।
तीसरी अवस्था है-निर्विचार । यह है ध्यान की अवस्था। इस अवस्था में चले जाने पर विचार समाप्त हो जाते हैं। न कोई कल्पना, न कोई स्फूर्ति और न कोई चिंतन । सारे दरवाजे बंद हो जाते हैं। यह हमारी निर्विचार अवस्था है
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