________________
जो सहता है, वही रहता है संत की समता
महाराष्ट्र के संत एकनाथ गोदावरी में स्नान करके आ रहे थे। एक आदमी झरोखे में बैठा था। उसने सोचा कि संत आ रहे हैं, उन्हें गुस्से में ले आऊँ। संत झरोखे के नीचे आए, उसने ऊपर से थूक दिया। संत के सिर पर थूक पड़ा। वे शुद्धि के लिए पुनः नदी की ओर चल पड़े। स्नान किया और फिर उसी झरोखे के नीचे से गुजरे। उस आदमी ने पुनः थूक दिया। संत पुनः स्नान करने नदी की ओर मुड़े। बीस बार आदमी ने थूका और बीस बार संत को स्नान करना पड़ा। उनके मन में उस व्यक्ति के प्रति तनिक भी क्रोध नहीं आया। व्यक्ति निराश हो गया। इतना जघन्य प्रयत्न करने पर भी क्रोध नहीं आया। वह नीचे उतरा और संत के पैरों में गिर पड़ा। उसने गिड़गिड़ाते हुए कहा, 'मैंने जघन्य अपराध किया। आप महान हैं, क्षमा करें।' संत बोले, 'तुमने कोई अपराध नहीं किया है। तुमने मेरा बड़ा उपकार किया है। तुम्हारे कारण ही मैं आज पुण्यभागी बना हूँ। प्रतिदिन एक बार माँ गोदावरी की गोद में जाता हूँ। तुमने तो मुझे माँ की
गोद में जाने के बीस अवसर दिए। मैं तुम्हारा आभारी हूँ।' परिस्थिति पर दोषारोपण
क्रोध उत्पन्न होने की भयंकर स्थिति एकनाथ के समक्ष थी। विकट परिस्थिति से वे गुजरे, पर क्रोध नहीं आया। क्यों, यह प्रश्न है। इसका समाधान है कि क्रोध उत्पन्न होने की परिस्थिति तो थी, किन्तु व्यक्ति में वह बीज विद्यमान नहीं था जो क्रोध को उभारता है। वह बीज दग्ध हो चुका था।
दूसरे को देखने वाला केवल परिस्थिति को देखता है। वह उस बीज को नहीं देखता, जिसे परिस्थिति प्रभावित करती है। ध्यान करने वाला व्यक्ति, अनेकांत की दृष्टि को जानने वाला व्यक्ति परिस्थिति को पच्चीस प्रतिशत मूल्य देता है। उस बीज को, जो परिस्थिति के कारण अंकुरित, पुष्पित, पल्लवित और फलित होता है। जिस व्यक्ति ने ध्यान का अभ्यास नहीं किया,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org