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________________ १७८ जो सहता है, वही रहता है के बाद राजा को राजगद्दी छोड़नी होती। नए राजा का अभिषेक हो जाता। पुराने राजा को अरण्य में छोड़ दिया जाता। यह परम्परा लम्बे समय तक चलती रही। राज्यमुक्त होने के बाद सब राजा पछताते पर अपने राज्यकाल में इस समस्या पर किसी ने भी गहरा चिंतन नहीं किया। राजा प्रद्युम्न के मन में एक विचार उभरा, 'यदि मैं वर्तमान को पकड़ें तो भविष्य की चोटी मेरे हाथ में आ सकती है। अपनी चोटी पकड़े बिना अपनी छाया की चोटी कभी नहीं पकड़ी जा सकती। उसने वर्तमान पर ध्यान केंद्रित किया और समस्या का समाधान खोज लिया। जिस अरण्य में राज्यमुक्त राजा को छोड़ा जाता, उसे सुंदर बनाने की कल्पना की। एक योजना बनाई। देखते-देखते अरण्य एक रमणीय बगीचे में बदल गया। बड़े-बड़े प्रासाद, राजपथ, विशाल जलाशय उसकी उपयोगिता बढ़ाने लगे। भोजन और चिकित्सा की व्यवस्था और जो कुछ चाहिए, वह सब वहाँ उपलब्ध हो गया। अरण्य की विभीषिका क्रीड़ागृह की रमणीयता में बदल गई। राजा बहुत प्रसन्न था। उसके मन में अब कोई भय नहीं रहा। राज्यमुक्ति का समय आया। पुत्र को राज्यासीन बना स्वयं अरण्यवास के लिए चल पड़ा। वह अरण्यवास राजप्रासाद से भी अधिक सुखद और आकर्षक था। वहाँ रहने को बड़े-बड़े लोग ललचाने लगे। जो भयारण्य था, वह अभयारण्य में बदल गया। वर्तमान की जागरूकता ___ मनुष्य के सामने कितने भयारण्य होते हैं! बहुत लोग उनमें अपना संकटमय जीवन जीने को विवश होते हैं। कितना अच्छा हो, कोई नई कल्पना और नई योजना बना उस भयारण्य को अभयारण्य बना दे! वर्तमान का मूल्यांकन होने पर ही इसकी संभावना बन सकती है। वर्तमान की जागरूकता ही जीवन की सफलता का सूत्र है। उसी के आधार पर उज्ज्वल भविष्य के देवालय का शिलान्यास किया जा सकता है। केवल अतीत के सुनहरे सपने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003054
Book TitleJo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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