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________________ १६६ जो सहता है, वही रहता है होता। न नैतिकता और न अनैतिकता। मनुष्य ने अपनी बुद्धि के द्वारा ऐसे मूल्यों की स्थापना की जो समाज के लिए कल्याणकारी नहीं हैं, अकल्याणकारी हैं। दिशा-परिवर्तन हुआ और उसने नैतिक मूल्यों की स्थापना की। दंडशक्ति का प्रयोग और बल का प्रयोग, यह मनुष्य में ही नहीं, हर प्राणी में चलता है। मनुष्य ही इसका प्रयोग नहीं करता, छोटे से छोटे प्राणी भी दंडशक्ति का प्रयोग करते हैं। प्राणियों की बात छोड़ दें, वनस्पति संसार में भी दंडशक्ति का प्रयोग चलता है। चींटियों में भी यह प्रचलित है। मधुमक्खियाँ तो दंडशक्ति का प्रयोग करती ही हैं। खोज करने पर यह स्पष्ट प्रतीत होता है कि प्रत्येक प्राणी में दंडशक्ति का प्रयोग और बल प्रयोग, ये दोनों चलते हैं। ऐसे वृक्ष होते हैं जो दंडशक्ति का प्रयोग कर प्राणियों को फँसा लेते हैं। ऐसे वृक्ष हैं जिनकी पत्तियाँ पहले खली होती हैं, फिर जैसे ही कोई प्राणी आकर उन पर बैठता है, वे सिकुड़ जाती हैं। प्राणी उनमें फँस जाता है। वे पत्तियाँ प्राणी को निचोड़कर, चूसकर बाहर फेंक देती हैं। एक नहीं, अनेक ऐसे वृक्ष हैं, पौधे हैं, जो बलप्रयोग करते हैं। वे अन्य जीवों को चूसते हैं, उनका शोषण करते हैं। इसी तरह चींटियाँ सामुदायिक व्यवस्था का पालन करती हैं। चींटियों की रानी सारी व्यवस्था का संचालन करती है। जो चींटियाँ काम करने से जी चुराती हैं, आलसी हो जाती हैं, उन्हें समाज से बाहर निकाल दिया जाता है। मधुमक्खियों की भी यही व्यवस्था है। रानी मधुमक्खी काम न करने वाली मधुमक्खियों को दंड देती है, उनका बहिष्कार करती है और दंडस्वरूप उनसे अधिक काम कराती है। सभी प्राणियों में दंड और बलप्रयोग की व्यवस्था चलती है। मनुष्य ने दंडशक्ति के स्थान पर आत्मानुशासन का विकास किया है। उसकी यह धारणा रही है कि बल का प्रयोग कम हो, दंडशक्ति का प्रयोग कम हो और आत्मानुशासन जागे। हृदय-परिवर्तन के सूत्र हृदय-परिवर्तन का पहला सूत्र है, 'आत्मानुशासन'। जब तक आत्मानुशासन का विकास नहीं होता, तब तक नहीं माना जा सकता कि हृदय-परिवर्तन हुआ है। हृदय-परिवर्तन हमारी चेतना की एक अमूर्त क्रिया है। उसे देखा नहीं जा सकता। किन्तु आत्मानुशासन के विकास को देखकर जान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003054
Book TitleJo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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