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________________ १२८ जो सहता है, वही रहता है स्वास्थ्य। ध्यान का एक पहलू है चिकित्सात्मक । बहुत सारे लोग प्रेक्षाध्यान के शिविरों में केवल आध्यात्मिक या आत्मोपलब्धि की भावना से नहीं आते। वे इस भावना से भी आते हैं कि शरीर स्वस्थ बन जाए। इतना विवेक अवश्य जागना चाहिए कि ध्यान आत्मशुद्धि अथवा आत्मा की उपलब्धि के लिए है। शारीरिक स्वास्थ्य उसका प्रासंगिक फल है। जो व्यक्ति ध्यान करेगा, वह स्वस्थ तो होगा ही, किन्तु शारीरिक स्वास्थ्य को मुख्य न बनाएँ। मुख्य बनाएँ निर्जरा को, संस्कार की शुद्धि को। इससे काम भी हो जाएगा और निर्मलता भी बढ़ेगी। साक्षात्कार के सरल सूत्र __ आचार्य भिक्षु ने कहा, 'व्यक्ति खेती करता है, बाजरा बोता है, चावल बोता है। वह आज के लिए खेती करता है, साथ में पलाल, तूड़ी और भूसा भी होता है। वह प्रासंगिक फल है। प्रासंगिक फल अपने आप मिलेगा। हम ध्येय बनाएँ निर्जरा को। कल्पना करें-एक व्यक्ति को मधुमेह की बीमारी है। बीमार को आसन सिखाए जाते हैं। वह आसनों का प्रयोग करे, किन्तु साथ में यह जोड़ दे कि मैं निर्जरा के लिए आसन करूँगा। आसन निर्जरा का ही एक प्रकार है। वह निर्जरा के लिए आसन करेगा तो साथ-साथ शरीर भी स्वस्थ होगा और दृष्टिकोण उदात्त बन जाएगा। निर्जरा मुख्य है और शारीरिक स्वास्थ्य प्रासंगिक, किन्तु वह प्रासंगिक होते हुए भी उपेक्षणीय नहीं है। उसकी उपेक्षा कर हम आत्मा तक पहुँचने की बात ही नहीं कर सकते। महावीर की भाषा में ध्यान का अधिकारी वह है, जो उत्तम संहनन अर्थात् शारीरिक संस्थानवज्रऋषभनाराच संहनन वाला है। जो व्यक्ति इस संहनन से सम्पन्न है, वह शुक्लध्यान तक पहुँच सकता है। जो शुक्लध्यान तक नहीं पहुंचा, वह आत्मध्यान तक भी नहीं पहुंच सकता। आज तक जितने भी केवली हुए हैं, जिन्होंने आत्मा का साक्षात् अनुभव किया है। जो घातिकर्म से मुक्त हुए हैं, वे ऐसे व्यक्ति हुए हैं, जिनके शरीर का संहनन वज्रऋषभनाराच था। उससे कमजोर संहनन वाला वहाँ जा ही नहीं सकता। एक व्यक्ति शुक्लध्यान करना चाहता है, आत्मा की गहराइयों में जाना चाहता है, विशिष्ट शक्तियों का अवतरण करना चाहता है और उसका शरीर उन्हें झेलने में सक्षम नहीं है, तो क्या होगा? वह उन्हें नहीं सह पाएगा। ध्यान करने वाले अनेक बार कहते हैं सिर में दर्द है, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003054
Book TitleJo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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