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अपना आलंबन स्वयं बनें
'ठीक तो हो गया। 'फिर क्या हुआ?'
'पहले तो मैं आपकी दवा से ठीक हुआ था, किन्तु जब आपका और दवा का बिल देखा, तब फिर बीमार हो गया।'
चिकित्सा के लिए बहुत लम्बी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। बहुत सारी समस्याएँ और बाधाएँ होती हैं। ठीक यही स्थिति ध्याता की होती है। ध्यान करने वाला व्यक्ति आत्मा तक पहुंचना चाहता है, पर यह संभव नहीं है कि वह सीधा वहाँ पहुँच जाए। पहले काफी जाँच करानी होती है। शरीर, मन और भावना की जाँच करानी होती है, जिसमें काफी समस्याएँ भी आती हैं। वह ध्यान कैसे करेगा? ___ एक भाई ने अपनी समस्या रखी—'मुझे निषेधात्मक विचार बहुत आते हैं। दिन में भी बुरे विचार आते हैं। किसी को देखता हूँ तो बुरा विचार आता है। किसी को कुछ देता हूँ तो विचार आता है कि कहीं धोखा न हो जाए। रातदिन नकारात्मक विचार आते रहते हैं। इससे कैसे छुटकारा मिले? व्यक्ति सम्पन्न था, कोई कमी नहीं थी, पर यह मानसिक समस्या उसके लिए बहुत बड़ा जंजाल बन गई। जिसके सामने निषेधात्मक विचारों की समस्या है, वह ध्यान करके कैसे आत्मा तक पहुँचेगा? जो व्यक्ति अवसादग्रस्त है, वह आत्मा का ध्यान कैसे करेगा? मन की पचासों समस्याएँ हैं। वह आत्मा का ध्यान कैसे करेगा? ध्येय के प्रकार
आत्मा तक पहुँचने के लिए, ध्येय को पाने के लिए, शारीरिक समस्याओं पर विजय पाना भी जरूरी है, मानसिक समस्याओं से निपटना भी जरूरी है। जितनी समस्याएँ हैं, उतने प्रयोग हैं। इस प्रकार ध्येय अनेक बन जाते हैं। एक है मुख्य ध्येय, दूसरे हैं प्रासंगिक और गौण ध्येय। मुख्य और गौण, दोनों के बिना कभी काम नहीं चलता। एक व्यक्ति ने मुम्बई से लाडनूं के लिए प्रस्थान किया। उसका मुख्य ध्येय है मुम्बई से लाडनूं पहुँचना, किन्तु बीच में गौण ध्येय और भी हो सकते हैं। जयपुर में किसी मित्र से मुलाकात करना, मिठाई खरीदना, ये सारे गौण ध्येय हैं। ध्यान के संदर्भ में एक गौण है शारीरिक
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