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जो सहता है, वही रहता है जीवित रहती हैं, सक्रिय रहती हैं, तो हृदय की गति बंद हो जाने पर भी आदमी मरता नहीं। कई बार ऐसा देखा गया है कि चिकित्सक जिस व्यक्ति को मृत घोषित कर देता है, वही व्यक्ति कुछ समय बाद जी उठता है। कभी-कभी वे व्यक्ति भी जी उठते हैं, जिनकी अर्थी निकल चुकी है, जो श्मशानघाट पहुँच चुके हैं, जिन्हें चिता पर लिटाकर चारों ओर लकड़ियाँ चिन दी गई हैं, पर अचानक हलचल होती है। लकड़ियाँ इधर-उधर बिखर जाती हैं और वह व्यक्ति अंगड़ाई लेते हुए उठ बैठता है। लोग उसे भूत समझ लेते हैं, कुछ लोग भाग भी जाते हैं, पर यथार्थ में वह मरा नहीं था। वह जीवित था। चिकित्सक ने मृत घोषित कर दिया और हमने मान लिया। वास्तव में उसका मस्तिष्क सक्रिय था, वह अभी मरा नहीं था और जब तक मस्तिष्क नहीं मरता, आदमी नहीं मर सकता, फिर चाहे हृदय बंद हो जाए या नाड़ी बंद हो जाए।
हमारे जीवन का मूल आधार मस्तिष्क है। वह जितना ठंडा रहेगा उतना ही चिंतन स्वस्थ होगा। स्वस्थ एवं संतुलित चिंतन के लिए मस्तिष्क का ठंडा होना बहत जरूरी है। इस दृष्टि से चिंतन का दूसरा मापदंड होगा कि चिंतन आवेश की स्थिति में किया जा रहा है या अनावेश की स्थिति में?
आवेश चिंतन दोषयुक्त है। आवेश आया, चिंतन शुरू किया। इस स्थिति में चिंतन तो हो सकता है, लेकिन वह चिंतन स्वस्थ, संतुलित और विधायक नहीं होगा। विधायक चिंतन तभी हो सकता है, जब आवेश की स्थिति न हो। चिंतन का आधार तथ्य होना चाहिए। तथ्यों के आधार पर चिंतन उपयोगी होता है। जहाँ तथ्य गौण और आवेश मुख्य हो जाता है, वहाँ चिंतन कार्यकारी नहीं हो सकता। जो व्यक्ति ध्यान का अभ्यासी नहीं होता, जिसका मन पर अधिकार नहीं है, जिसका मन शांत और संतुलित नहीं है, वह व्यक्ति तात्कालिक एवं आवेशपूर्ण चिंतन करता है। उसका चिंतन कभी सही नहीं होता।
एक राजनेता के पास उसके मित्र ने आकर कहा कि अमुक-अमुक व्यक्ति तुम्हें गालियाँ बक रहा था। राजनेता ने सुना और गुस्से से लाल हो गया, बोला कि पहले मुझे चुनाव जीत लेने दो, मंत्री बन जाने दो, फिर मैं बता दूँगा कि गाली देने का परिणाम क्या होता है?
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