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जो सहता है, वही रहता है उद्देश्य का अंतर
आयुर्वेद का लक्ष्य है मानसिक स्वास्थ्य की सुरक्षा और अध्यात्म का लक्ष्य है पाप से बचाव, अधर्म से बचाव। एक का उद्देश्य है आत्मा की रक्षा
और दूसरे का उद्देश्य है स्वास्थ्य की रक्षा । उद्देश्य भिन्न होने पर भी विषय में कोई भेद नहीं है। विषय आ गया, क्रोध से बचना है, काम से बचना है। इन दोनों का एक सूत्र है। काम का मतलब है इंद्रिय विषयों के प्रति आसक्ति। काम की आसक्ति होती है, मनोबल टूट जाता है। एक सैनिक युद्ध के मोर्चे पर लड़ रहा है। काम की आसक्ति आ गई। वह सोचेगा-पीछे क्या होगा? नईनई शादी हुई है, पत्नी का क्या होगा? बस मनोबल टूट गया। एक व्यक्ति सबेरे-सबेरे लम्बी-लम्बी डींगें हाँकता है, मैं ऐसा कर सकता हूँ, वैसा कर सकता हूँ। मैं कभी चिंता नहीं करता, चाहे कोई भी कष्ट आ जाए। ऐसा लगता है कि इस जैसे मनोबल वाला व्यक्ति कोई दूसरा है ही नहीं। सांझ होते-होते समाचार आया, जवान बेटा दुर्घटना में मारा गया। बस, मनोबल पलायन कर गया, टूट गया। पता नहीं मनोबल था भी या नहीं। एक मानस दोष पैदा हुआ, वह मनोबल को लील गया। मात्सर्य
कुछ मानस दोष ऐसे होते हैं, जो मीठे होते हैं, तेज नहीं होते। उनका पूरा पता नहीं चलता। जब वे वेग में आते हैं तो स्थिति बदल जाती है, मन का बल टूट जाता है। मानसिक दोष जब तीव्र बन जाते हैं, तब वे एकसाथ मनोबल को चट कर जाते हैं। ___ मात्सर्य एक मानस दोष है। दूसरे की विशेषता को सहन न करने की वृत्ति है मात्सर्य। मनोबल का एक अर्थ है-सहन करने की शक्ति। ईर्ष्या और मात्सर्य। इन दोनों का काम है सहनशक्ति को नष्ट कर देना । ईर्ष्या से जलन पैदा हो जाती है। मात्सर्य से भरा व्यक्ति दूसरे की विशेषता को सहन नहीं कर सकता। वह क्रूर बन जाता है। ईर्ष्या और मात्सर्य की कितनी ही कहानियाँ हमारे यहाँ प्रचलित हैं। जहाँ एक व्यक्ति दूसरे की विशेषता को सहन नहीं कर सकता, वहाँ सारी मानसिक स्थिति बिगड़ जाती है। यह स्थिति व्यापक बन गई है। आज के युग में सबसे बड़ी बीमारी
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