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________________ जो सहता है, वही रहता है मन का मंथन प्रश्न है संकल्प ले लिया, पर यह सिद्ध हो गया क्या? यदि संकल्प लेने मात्र से सारी बातें सिद्ध होतीं, तो दुनिया में सबसे बड़ा शब्द का चमत्कार होता कि जो भी कहा सिद्ध हो गया। हर कोई आदमी कहेगा कि मैं गरीबी नहीं चाहता । गरीबी को मिटा दूंगा, यह बात सिद्ध हो जाती। यह जो बुराई है, इसे मिटा दूँगा। एक जादू की छड़ी जैसी बात हो जाती। पर केवल शब्द के उच्चारण से कोई काम सधता नहीं। हमारे पास कोई ऐसा चिंतामणि रत्न नहीं है कि जो भी मँह से कहा, वह सामने पेश हो गया। चिंतामणि, कल्पवृक्ष और कामधेनु कहाँ हैं? जो मन में कल्पना की, जो कामना की, चिंता की और वह सिद्ध हो गया। आज तो ऐसा कुछ भी नहीं है। मात्र संकल्प के स्वीकार से, एक शब्द के उच्चारण से ये बातें कैसे बन सकती हैं? इस पर गंभीर चिंतन हुआ। तीर्थंकरों ने, आचार्यों ने एक मार्ग बताया कि गुप्ति की साधना करो, व्रत सिद्ध होगा। मनोगुप्ति, वचनगुप्ति और कायागुप्ति, इन गुप्तियों की साधना से व्रत सिद्ध होगा। मन स्थिर है तो अहिंसा सिद्ध हो जाएगी। मन निर्मल है, स्थिर है तो ब्रह्मचर्य सिद्ध हो जाएगा। मन स्थिर है, निर्मल है तो अपरिग्रह सध जाएगा। पर जब तक मन चंचल है, मन बंदर बना हुआ भटक रहा है, दौड़ लगा रहा है, पदार्थ के पीछे दौड़ रहा है, व्यक्ति के पीछे दौड़ रहा है, घटनाओं के पीछे दौड़ रहा है, उतनी ही चंचलता, उतना ही विक्षेप और उतना ही आसक्तभाव, सब कुछ चल रहा है, तो क्या अहिंसा सध जाएगी? ब्रह्मचर्य सध जाएगा? साधु बनने मात्र से सब कुछ सध जाएगा? अगर ऐसा सुगम उपाय मिले तो मैं चाहूँगा कि सारी दुनिया को ही साधु बना लिया जाए। किसी को असंन्यासी रहने की आवश्यकता ही नहीं है। एक शब्द का उच्चारण किया और बात बन गई। जो साधक इसी तरह अपनी साधना में आगे बढ़ता है, उसे पीछे अवश्य लौटना होता है। एक चूहा था। उसे बिल्ली से बहुत डर लगता था। एक बार एक ऋषि ने उसे वरदान दिया और वह तुरंत बिल्ली बन गया। अब बिल्ली का भय मिटा, लेकिन कुत्ते का भय सताने लगा। ऋषि ने उसे कुत्ता बना दिया। इसी तरह कुछ दिन बीते। ऋषि ने पूछा, 'अभय हो गए?' वह बोला, 'अभय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003054
Book TitleJo Sahta Hai Wahi Rahita Hai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2010
Total Pages196
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size11 MB
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