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________________ प्रस्तुति हम दर्पण से परिचित हैं और प्रतिबिम्ब से भी परिचित हैं। बिम्ब से परिचित नहीं हैं। जिसे बिम्ब मान रहे हैं, वह भी वास्तव में प्रतिबिम्ब है। शरीर बिम्ब नहीं है। बिम्ब है आत्मा अथवा चेतना। कोई भी दर्पण उसका प्रतिबिम्ब नहीं लेता। आवश्यकता है दर्पण के निर्माण की। प्रेक्षा एक दर्पण है। उसमें अपना बिम्ब देखा जा सकता है। ऐसा दर्पण, जो प्रतिबिम्ब को नहीं लेता, केवल बिम्ब को ही बिम्बित करता है। हम इस प्रकार के दर्पण से भी परिचित नहीं हैं। हमें परिचित होना है और इसीलिए होना है कि हम स्वास्थ्य और शान्तिपूर्ण जीवन जी सकें। प्रस्तुत पुस्तक का अन्वर्थ है-अपने दर्पण का निर्माण और अपने बिम्ब का दर्शन । प्रेक्षा निर्जरा की प्रक्रिया है, जिससे पुराने संस्कार क्षीण हो सके। प्रेक्षा संवर का प्रयोग है, जिससे प्रतिबिम्ब पैदा करने वाले परमाणु चेतना के भीतर न आ सके। शोधन और निरोध तथा निरोध और शोधन-इस क्रम का परिणाम है बिम्ब का दर्शन, साक्षात्कार। योगक्षेम वर्ष चिन्तन-मनन, प्रशिक्षण और प्रयोग का महान् अनुष्ठान था। उसमें एक ओर आचार्यश्री की सन्निधि, दूसरी ओर सैंकड़ो सैंकड़ो प्रबुद्ध साधु-साध्वियों की उपस्थिति, तीसरी ओर जनता। इन सबके बीच में प्रेक्षाध्यान के संदर्भ में जो चिंतन प्रस्तुत किया, वह अपना दर्पण : अपना बिम्ब में समाकलित है। आचार्यवर की सन्निधि मेरे लिए एक सहज प्रेरणा है। उनकी उपस्थिति में जो स्रोत प्रवाहित होता है, वह अन्यत्र प्रवाहित नहीं होता। मुनि दुलहराजजी प्रारम्भ से ही साहित्य-संपादन के कार्य में लगे हुए हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003053
Book TitleApna Darpan Apna Bimb
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages258
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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