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अर्हम्
है । यह हृदय एक मांसपेशी है । इसको क्या बदलना ? इसका काम है रक्त का पंपिंग करना। बदलना उस हृदय को है, जो यथार्थ में हृदय है, मध्यवर्ती है । 'ह' का उच्चारण उसे प्रभावित करता है ।
'म' के उच्चारण से होठ प्रभावित होता है । होठ उदान-प्राण का केन्द्र है । उदान एक प्राणशक्ति है । यह सिद्धि देने वाली शक्ति है । उदान जागृत होती है तो सिद्धियां प्राप्त होती हैं । मौन करने का अर्थ न बोलना ही नहीं है । मौन करने का अर्थ है उदान प्राणशक्ति को विकसित करना । मौन में दोनों होठ बंद रहने चाहिए । ध्यान के समय भी दोनों होठ बंद रहने चाहिए। मौन से उदान प्राणशक्ति मिलती है। मकार के उच्चारण का भी यही प्रयोजन है ।
अर्हत् का बीजमंत्र
अर्हं हमारा इष्ट है । यह अर्हत् का बीजमंत्र है । प्रत्येक मनुष्य में असीम क्षमताएं होती हैं । जिसमें अपनी क्षमताओं को प्रगट करने की अर्हता जग जाती है, जो दूसरों की अर्हता को जगाने में लग जाता है, वह अर्हत् होता है ।
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भगवान् महावीर अर्हत् थे । अहं भगवान् महावीर का प्रतीक है। आनन्दकेन्द्र थाइमस ग्रन्थि का प्रभाव क्षेत्र है । अहं उसको जगाने वाला मंत्र है । यह इसका सूचक है कि हमारे भीतर पदार्थातीत आनन्द का स्रोत बह रहा है । हम आनन्दकेन्द्र में अहं का ध्यान कर स्थायी आनन्द का अनुभव कर सकते हैं । इस आनन्द के प्रगट होने पर मानसिक तनाव कभी नहीं होता ।
अहं : निष्पत्ति
एक प्रश्न है- अहं क्या है ? और इसकी निष्पत्ति क्या है ? अर्हं एक शक्तिप्रदाता बीजमंत्र है और उसमें निहित है -
१. अस्तित्व की स्मृति ।
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