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अपना दर्पणः अपना बिम्ब हैं-शकृत् और सकृत् । दोनों के दो अर्थ हैं और उनमें आकाश-पाताल का अन्तर है । सकृत् का अर्थ है-एक बार और शकृत् का अर्थ है-मल । इसी शब्द-भेद से होने वाले अर्थभेद को ध्यान में रखकर एक पिता ने अपने पुत्र से कहा-बेटे ! कुछ पढ़े या न पढ़ो पर व्याकरण अवश्य पढ़ना । उसने पूछा-क्यों ? पिता ने कहा-व्याकरण के बिना शकल और सकल तथा शकृत् और सकृत् में भेद कर पाना सरल नहीं होगा । शकल का अर्थ है-टुकड़ा और सकल का अर्थ है पूरा, सम्पूर्ण । इसी का वाचक है यह श्लोक
यद्यपि बहुनाधीसे तथापि पठ पुत्र ! व्याकरणम् । स्वजनः श्वजनो मा भूत, सकलं शकलं सकृत् शकृत् ।।
शब्द-भेद को जाने बिना उच्चारण में भेद नहीं डाला जा सकता। उच्चारण के भेद के बिना अर्थ-भेद नहीं समझा जा सकता । जब उच्चारण में भेद नहीं रहता तब अर्थ-भेद भी मिट जाता है और प्रकंपन-भेद भी मिट जाता है। उच्चारण के जितने भी स्थान हैं, उन स्थानों से अलग-अलग प्रकार के ध्वनि-प्रकंपन होते हैं । जो अक्षर होठ से बोला जाएगा, उसका प्रभाव भिन्न होगा और जो अक्षर कंठ से बोला जाएगा, उसका प्रभाव भिन्न होगा । अर्हम् : ध्वनिशास्त्रीय मीमांसा
जब हम 'अ' का उच्चारण करते हैं तब विद्युत् केन्द्र सक्रिय बनता है। यह कंठ का स्थान है, थाइराइड का स्थान है । यह चयापचय के लिए उत्तरदायी है । यहां के नाव का असर मन और शरीर पर होता है । यह चन्द्रमा का स्थान है, मन का स्थान है । _ 'ह' का प्रभाव होता है मस्तिष्क के अगले हिस्से पर, शान्ति केन्द्र पर। शरीरशास्त्र की दृष्टि से यह हाइपोथेलेमस का स्थान है । यह महत्त्वपूर्ण चेतनाकेन्द्र है । यह भावना का स्थान है, भावना का स्रोत है। यह सूक्ष्म शरीर
और स्थूल शरीर का केन्द्र- बिन्दु है । यह प्राचीन भाषा में हृदय का स्थान है । कहा जाता है-हृदय परिवर्तन करो। इसका अर्थ धड़कने वाला हृदय नहीं
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