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अपना दर्पणः अपना बिम्ब
खाने की विधि
खाने की विधि है-चबा-चबाकर खाना। आदमी चबाता है खाते समय और पशु चबाता है जुगाली करते समय । पशु पहले खा लेते हैं, फिर उसे चबाते हैं । आदमी ऐसा नहीं कर सकता । उसे खाते समय ही चबाना होता है । खाने के बाद चबाना उसके वश की बात नहीं है । यदि व्यक्ति खाते वक्त चबाता नहीं है तो दांत का काम बेचारी आंत को करना पड़ता है । या दांत पिसाई करे या आंत पिसाई करे । दांत का काम है-पिसाई करना । यदि दांत नहीं करता है तो आंत को करना पड़ता है । बिना चबाए खाना आंत को बिगाड़ने का बड़ा अच्छा तरीका है । इससे आंतें जल्दी खराब हो जाती
हैं।
प्रश्न है निष्पत्ति का
आहार हमारे जीवन का महत्त्वपूर्ण पहलू है । भोजन के बारे में विमर्श करते समय हमें उसे अनेक पहलुओं से देखना होगा ।
'शक्तेर्वृद्धिः क्षतेः पूर्तिः, विजातीयस्य निर्गमः । लाघवश्च प्रसादश्च, भोजने परिवीक्ष्यताम् ।। भोजन की ये पांच निष्पत्तियां होनी चाहिए१ शक्ति की वृद्धि २- क्षति की पूर्ति ३- विजातीय का निर्गम ४- लघुता की उपलब्धि
५- प्रसन्नता की प्राप्ति । शक्ति की वृद्धि : क्षति की पूर्ति
पहली बात है शक्ति की वृद्धि । हम जो आहार कर रहे हैं वह शक्ति बढ़ाने वाला है या घटाने वाला है ? भोजन का मुख्य काम है शक्ति की वृद्धि।
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