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________________ अपना दर्पणः अपना बिम्ब समझा है, उसमें दुःख नहीं होगा, दौर्मनस्य नहीं होगा, अंगमेजयत्व नहीं होगा, श्वास-प्रश्वास की गति मंद हो जाएगी । काल-अप्रतिबद्ध ध्यान भावक्रिया निरन्तर होने वाला ध्यान है । यह काल-प्रतिबद्ध नहीं है। एक भोजन वह है, जो दिन में दो-तीन बार किया जाता है । एक भोजन वह है, जो चौबीस घंटे चलता रहता है । कवल आहार व्यक्ति बहुत बार नहीं कर सकता, पर रोम आहार अनवरत चलता रहता है। जो व्यक्ति चौबीस घंटे रोम आहार नहीं ले पाता, वह जी नहीं सकता। यदि एक घंटा रोम आहार बंद हो जाए, दस मिनट रोम आहार बंद हो जाए तो आदमी तड़पने लग जाए। इसी प्रकार काल-प्रतिबद्ध ध्यान वह है, जो दिन में दो-तीन बार किया जा सकता है । लेकिन भावक्रिया ऐसा ध्यान है, जो चौबीस घंटे किया जा सकता है । बोलें तो चेतना के साथ बोलें, बोलना ध्यान बन जाएगा । चलें तो चेतना के साथ चलें, सुने तो चेतना के साथ सुनें । हमारा बोलना ध्यान बन जाए, हमारा चलना ध्यान बन जाए, हमारा सुनना और खाना ध्यान बन जाए । पढना और लिखना भी ध्यान बन जाए । हमारी प्रत्येक क्रिया ध्यान बन जाए। भावक्रिया, समाधि और धर्म आचार्य हरिभद्र ने लिखा है-धर्म का सारा व्यापार योग है। चौबीस घंटे ध्यान करने का प्रयोग है-भावक्रिया, चेतना को प्रवृत्ति के साथ जोड़ देना । इस स्थिति का निर्माण बहुत कठिन है । हम करते कुछ हैं और ध्यान कहीं दूसरी जगह होता है । माला फेरते हैं तो ध्यान नाश्ते में अटका रहता है व्याख्यान सुनते हैं तो मन व्यापार में चक्कर लगाता है । मन कहीं दौड़ता है और हम कहीं और होते हैं | मन को शायद यह बात पसंद नहीं है कि वह शरीर के साथ चले । परस्पर साथ रहते हैं पर आपस में एक विरोध जैसा बना रहता है । यह विरोध मिटता नहीं है । मन अलग जाना चाहता है और शरीर अलग जाना चाहता है। यह मन और शरीर की जो अलग अलग गति है, इसका अर्थ ही है अधर्म । यही है असमाधि और विक्षेप । दोनों को जोड़ने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003053
Book TitleApna Darpan Apna Bimb
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages258
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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