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भावक्रिया
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चंचलताः दौर्मनस्य
व्यक्ति के मन में अनेक इच्छाएं पैदा होती हैं । इच्छा पैदा हुई-अमुक चीज मिले । यदि वह चीज नहीं मिलती है तो एक आघात लगता है। उस आघात से चेतना में जो क्षोभ पैदा होता है, उसका नाम है दौर्मनस्य। जिसमें जितनी ज्यादा चंचलता है, उसमें उतना ही ज्यादा दौर्मनस्य होगा । एक व्यक्ति ऐसा होता है, जिसे राई जितनी बात भी पहाड़ जितनी लगती है और एक व्यक्ति ऐसा होता है, जिसे पहाड़ जितनी बात भी राई जितनी लगती है । इस अंतर का कारण है-चंचलता का कम या ज्यादा होना । विक्षेप : प्रकंपन
जहां विक्षेप है वहां प्रकम्पन है । व्यक्ति स्थिर रहना जानता ही नहीं है । दो मिनट स्थिर बैठना भी उसके लिए संभव नहीं होता । जब भीतर में विक्षेप है तो शरीर में भी विक्षेप होगा । व्यक्ति बीस मिनट स्थिर रहना सीख लेता है तो मानना चाहिए कि भीतर में थोड़ा विक्षेप कम हुआ है। जो ध्यान शिविर में पहली बार आते हैं, उनके लिए कुछ दिन बहुत अटपटे रहते हैं। इतना विक्षेप होता है कि एक घंटा के ध्यान में पच्चीस-तीस बार आसन बदल लेते हैं । पांच-छह दिन की साधना के बाद ऐसी स्थिति बनती है-व्यक्ति एक घंटा में एक बार भी आसन नहीं बदलता । विक्षेप की कमी से ऐसा संभव बनता है । विक्षेप और श्वास की गति
विक्षेप बढता है तो श्वास की गति तीव्र हो जाती है । सामान्य स्थिति में १५-१६ श्वास आते हैं । जब वासना का भाव जागता है, चंचलता बढती है, श्वास की संख्या पचास-साठ तक चली जाती है। जहां एक मिनट में पंद्रह श्वास आने चाहिए वहां पचास साठ श्वास आ जाते हैं । इस स्थिति में बेचारा जीवन कहां टिकेगा! जीवनीशक्ति कितनी समाप्त हो जाती है ! यह सब विक्षेप के कारण होता है । जिसने एकाग्रता का अभ्यास किया है, भावक्रिया को
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