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अरहते सरणं पवज्जामि
स्वतंत्रता : परतंत्रता
प्रत्येक व्यक्ति स्वतंत्रता का अधिकारी है। यद्यपि नीतिशास्त्र में स्वतंत्रता और परतंत्रता - दोनों को ही सापेक्ष मूल्य दिया गया है। परतंत्रता विहीन स्वतंत्रता निरपेक्ष रूप में नहीं होती और स्वतंत्रता विहीन परतंत्रता भी जीवन को नष्ट करने वाली होती है। व्यक्ति कितना ही स्वतंत्र क्यों न हो, वह अपने पर एक छत्रछाया रखना चाहता है, एक आश्रय रखना चाहता है। इसका अर्थ है-वह किसी की शरण में रहना चाहता है। शरण का अर्थ है घर । प्रश्न आया-किसकी शरण में जाएं? बहुत चिन्तन के बाद व्यक्ति इस निष्कर्ष को उपलब्ध हुआ-अरहते सरणं पवज्जामि - मैं अर्हत् की शरण में जाता हूं। इससे बड़ा कोई घर या शरण नहीं है। वहां जाने के बाद सारी समस्याएं समाप्त हो जाती हैं, सारे संदेह मिट जाते हैं, व्यक्ति पूर्ण आश्वस्त और विश्वस्त हो जाता है। आत्मा की शरण : अर्हत की शरण
दूसरी भाषा में कहा जा सकता है जो अपनी आत्मा को जानता है, वह है अर्हत् । 'अर्हत् की शरण में जाता हूं', इसका अर्थ है-मैं अपनी आत्मा की शरण में जाता हूं। जब आदमी आत्मा की शरण में जाता है तब उसका मोह विलीन हो जाता है।
जो द्रव्य, गुण और सारे पर्यायों से अर्हत् को जानता है, वह आत्मा को जानता है। उसका मोह विलीन हो जाता है।
जो जाणदि अरिहंते, दव्वत्तगुणत्तपज्जवत्तेहिं। सो जाणदि अप्पाणं, मोहो खलु तस्स जादि लयं।।
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