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________________ २२२ अपना दर्पणः अपना बिम्ब सफी संत अपने विशाल दल के साथ यात्रा कर रहा था। उसें सायंकाल एक जंगल में रुकना पड़ा। रात्रिकालीन प्रवास की सारी व्यवस्थाएं जुटाई गई। एक वृद्ध आदमी उधर से गुजरा। वह विश्रान्त था। उसने संत से प्रार्थना की-मैं बहुत थक गया हूं। रात में कहां जाऊंगा? यदि आप आज्ञा दें तो मैं रात्रि-विश्राम यहीं करना चाहता हूं। संत ने उसे ठहरने की अनुमति दे दी। नमाज का समय हुआ । सब लोग नमाज अदा करने लगे । वह वृद्ध नमाज नहीं पढ़ता था। उसने नमाज करने वालों को सुनाते हुए कहा-खुदा कहां है? किसने देखा है खुदा को? सब धोखा है, पाखण्ड है। संत यह सुनकर स्तब्ध रह गया। उसने कहा-भले आदमी ! ऐसी बातें बंद करो। खुदा को गालियां मत दो। वृद्ध आदमी ने संत के कथन को अनसुना कर दिया। संत तिलमिला उठा। उसने अपने कर्मकारों को आदेश दिया इसको यहां से बाहर निकाल दो। वृद्ध आदमी ने अनुनय के स्वर में कहा-इस भयंकर अंधियारी रात में मैं कहां जाऊंगा। संत ने कहा-ऐसे काफिर और नास्तिक आदमी को मैं यहां नहीं रहने दूंगा। चले जाओ यहां से । संत के कर्मकरों ने उसे धक्का देकर बाहर निकाल दिया। कहा जाता है-उसी समय खुदा प्रकट हुआ, उसने कहा – क्या हो रहा है? झगड़ा क्या है? ___संत ने कहा, ऐसा कोई बदमाश आदमी आ गया, जो खुदा को गालियां दे रहा था। बहुत ही नास्तिक और काफिर आदमी था। वह खुदा को कुछ समझता ही नहीं था। सत्तर-अस्सी वर्ष का बूढ़ा होकर भी वह खुदा का अपमान कर रहा था। मैं खुदा के इस अपमान को कैसे सहन करता? मैंने उसे धक्का देकर बाहर निकलवा दिया। खुदा ने कहा - तुमने यह अच्छा नहीं किया। वह बेचारा रात को कहां जाएगा? दुःख पाएगा, भटक जाएगा। इतने घोर अंधकार में, खुले आकाश में वह कहां रहेगा? तुम्हारे पास तम्बू हैं, सब कुछ व्यवस्थाएं हैं। तुमने उसे क्यों निकाला? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003053
Book TitleApna Darpan Apna Bimb
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages258
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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