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________________ १८८ अपना दर्पणः अपना बिम्ब तो उसमें संकोच और विस्तार-दोनों संभव हैं। जैसे छोटे कमरे में दीप का प्रकाश फैलता है वैसे ही वह बड़े कमरे में भी फैल जाता है। उसी प्रकार आत्मा को शरीर में जितना स्थान मिलता है, आत्मा का प्रकाश उतनी ही दूर में फैल जाता है । जैसा रंग : वैसा ढंग ___ आत्मा एक जीवन-सत्ता है। वह पूरे शरीर में फैला हुआ है इसीलिए हम चेतना का अनुभव करते हैं। सिर पर ध्यान करें या पैर पर ध्यान करें, पूरे शरीर में चैतन्य की अनुभूति होती है। चैतन्य केन्द्र भी पूरे शरीर में फैले हुए हैं। रंग भी पूरे शरीर में फैले हुए हैं। हमारी शरीरयुक्त आत्मा रंगीन आत्मा है। आत्मा को अमूर्त और रंगविहीन माना गया है किन्तु वह शरीर-रहित आत्मा के लिए है। कहा जाता है अपने आपको देखें। जहां शरीरयुक्त आत्मा है वहां हमारी भाषा होगी-जैसा रंग है वैसा जानो। हम कृष्ण लेश्या में हैं तो हमारी आत्मा भी काली बनी हुई है। प्रसिद्ध लोकोक्ति है-जैसा रंग वैसा ढंग । रंगों का इतना प्रभाव है कि रंगों को छोड़कर इस शरीरधारी आत्मा की व्याख्या करना ही कठिन है। व्यक्ति लेश्यातीत कहां होता है? जैन दर्शन की परिभाषा में तेरहवें गुणस्थान को पार करने के बाद व्यक्ति लेश्यातीत होता है। तेरहवें गुणस्थान में रंग हैं । रंगातीत वह होता है, जो अयोगी हो जाता है। मंत्र, चैतन्य केन्द्र और रंग व्यक्तित्व रूपान्तरण का एक महत्त्वपूर्ण प्रयोग है-लेश्याध्यान, रंगों का ध्यान। प्रेक्षाध्यान में एक प्रयोग करवाया जाता है-चैतन्य केन्द्र पर मंत्र और रंग का ध्यान । नमस्कार मंत्र के साथ रंग और चैतन्य केन्द्र की संयोजना का एक प्रकल्प यह है मंत्र रंग चैतन्य केन्द्र ज्ञान केन्द्र णमो अरहंताणं सफेद For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003053
Book TitleApna Darpan Apna Bimb
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages258
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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