SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 204
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ लेश्याध्यान (9) स्वाभाविक प्रश्न जैन दर्शन आत्मवादी दर्शन है। आत्मा जानता है और पदार्थ जाना जाता है। आत्मा ज्ञाता है और जगत् ज्ञेय है। एक प्रश्न है-आत्मा कहां है? कुछ दार्शनिक मानते हैं-आत्मा पूरे जगत् में फैला हुआ है। जैन दर्शन में आत्मा को शरीर प्रमाण माना गया है। जितना शरीर है, उतने में फैली हुई है आत्मा। फ्रांसीसी दार्शनिक डेकार्ट ने प्रश्न उठाया-चेतना का विस्तार कैसे हो सकता है? पदार्थ का विस्तार हो सकता है किन्तु चेतना और विस्तार - इन दोनों का मेल नहीं है। चेतना का विस्तार नहीं हो सकता इसलिए आत्मा को शरीर प्रमाण कैसे माना जा सकता है? चिन्तन की सत्ता : जीवन सत्ता ____ यह प्रश्न स्वाभाविक है । यदि आत्मा का विस्तार हो तो मुक्त आत्मा का भी विस्तार हो जाएगा। जैनदर्शन ने आत्मा में संकोच और विस्तार स्वीकार किया है किन्तु वह कार्मण शरीर के साथ ही स्वीकृत है। आत्मा को पूरे लोक जितना माना गया है। एक भाषा में यह भी कहा जा सकता है-आत्मा का विस्तार नहीं, संकोच होता है। डेकार्ट ने जो सोचा, उसका कारण यह हो सकता है कि डेकाटें की भाषा में जो आत्मा है, वह चिन्तन की सत्ता (Thinking Power) है। डेकार्ट ने यही कहा-मैं सोचता हूं इसलिए मैं हूं। जैन दर्शन की जो आत्मा है, जिसमें संकोच-विस्तार होता रहता हैं, उसे कहना चाहिए - जीवन-सत्ता (Living Power) । हमारा जो संकोच-विस्तार होता है, वह एक प्राणशक्ति के आधार पर, जीवन-सत्ता के आधार पर होता है। यदि कोरा आत्मा हो तो ऐसा होना संभव नहीं है। जीवन-सत्ता के साथ प्राणशक्ति है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003053
Book TitleApna Darpan Apna Bimb
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages258
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy