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________________ लेश्या : गंध, रस और स्पर्श १८३ लेश्या वर्ण गंध पद्य हरिताल के सुगन्धित पुष्प समान से अनन्तगुना अधिक रस विविध आसवों से अनंतगुना अम्ल स्पर्श नवनीत एवं शिरीष से अनंतगुना मृदु " शुक्ल शंख या चांदी के समान शक्कर से अनंतगुना मीठा रहस्यपूर्ण वाक्य हम इनका विश्लेषण करें। कहां खंजन जैसा काला रंग और कहां चांदी जैसा चमकता हुआ श्वेत रंग। कहां मृत कलेवर से अनंतगुना अधिक दुर्गंध और कहां सुरभित पुष्प से अनंतगुना अधिक सुगंध। कहां कच्ची केरी से अनंतगुना खट्टा रस और कहां शक्कर से अनंतगुना मीठा रस । कहां करवत से अनंतगुना तीक्ष्ण स्पर्श और कहां नवनीत से अनंतगुना कोमल स्पर्श। लेश्या लेश्या में कितना अंतर है, कितना तारतम्य है? दोनों प्रकार के परमाणु हमारे भीतर और आसपास बिखरे हुए हैं। यह हमारे हाथ में है कि हम किससे काम लें। यह प्रत्येक व्यक्ति पर निर्भर है कि वह चाहे तो करवत से काम ले या नवनीत सी मदुता को अपनाए। व्यक्ति अपने सुख-दुःख का कर्ता स्वयं है, यह वाक्य इस संदर्भ में कितना रहस्यपूर्ण है। कहा गया-'अप्पा कत्ता विकत्ता य' आत्मा ही कर्ता है और आत्मा ही विकर्ता है। एक नौसिखिया व्यक्ति भी इसका सही अर्थ कर देगा पर इस सरल दिखाई देने वाले वाक्य के पीछे कितना रहस्य छिपा है। एक ओर अप्रशस्त वर्ण, गंध, रस और स्पर्श हैं दूसरी ओर प्रशस्त वर्ण, गंध, रस और स्पर्श हैं। हम किन परमाणुओं का उपयोग करें? किसका स्विच ऑन करें और किसका स्विच ऑफ करें? किस बटन को दबाएं और किस बटन को खोलें? यह हमारे हाथ की बात है और यही है पुरुषार्थवाद या आत्म-कर्तृत्ववाद । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003053
Book TitleApna Darpan Apna Bimb
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages258
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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