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________________ १५४ अपना दर्पणः अपना बिम्ब दबाना उनके लिए संभव नहीं होता इसलिए उनके मन की बात कहीं न कहीं आलोचना के रूप में प्रस्फुटित हो जाती है। यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। यह अलग बात है कि व्यक्ति को ऐसा नहीं करना चाहिए। सुकरात का बार-बार दर्पण में देखना शिष्यों के लिए एक समस्या बन गया। वे न कुछ पूछ पाते और न ही रह पाते । वे आपस में बतियाते-इतना महान् तत्वज्ञानी भद्दे चेहरे को दर्पण में बार-बार क्यों देखता है? चेहरा सुन्दर हो तो देखने में मजा आए। ऐसा भद्दा चेहरा, जिसे आदमी दूसरी बार भी नहीं देखना चाहे और ये बार-बार देखे जा रहे हैं । क्यों? ऐसे ही एक दिन सुकरात शीशा देख रहे थे। कुछ शिष्यों की हंसी एक साथ फूट पड़ी । सुकरात उनकी प्रकृति को जानते ही थे। सुकरात ने कहा-मैं शीशा देख रहा हूं इसीलिए तुम हंस रहे हो। तुम सोचते हो-मैं भद्दा हूं फिर शीशा क्यों देखता हूं, पर तुम यह नहीं जानते-सुन्दर आदमी को शीशा देखने की जरूरत ही नहीं है। जो स्वयं सुन्दर है, वह शीशा किसलिए देखे? शीशा देखने की जरूरत उसे है, जिसका चेहरा भद्दा है । मैं शीशे में यह देखता हूं-मेरा चेहरा भद्दा है पर ऐसा काम न हो जाए, जिससे मेरा चेहरा और अधिक भद्दा बन जाए। मैं यह देखता हूं-कहीं मेरा ऐसा आचरण और व्यवहार तो नहीं हो रहा है, जिससे मेरा चेहरा अधिक कुरूप हो जाए। सुकरात के इस कथन ने शिष्यों की जिज्ञासा और संदेह को समाहित कर दिया। नई संभावनाएं लेश्या का सिद्धान्त हमारे सामने एक ऐसा दर्पण है, जिसमें प्रत्येक व्यक्ति अपना चेहरा देख सकता है। आचार, विचार और व्यवहार-सबका प्रतिबिम्ब लेश्या के दर्पण में देखा जा सकता है। __लेश्या का यह सिद्धान्त भगवान् महावीर की दार्शनिक जगत् को बहुत बड़ी देन है। दर्शन और अध्यात्म के जगत् में इसका मूल्य सदा रहा है। आज Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003053
Book TitleApna Darpan Apna Bimb
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages258
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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