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________________ लेश्या सिद्धान्त : ऐतिहासिक अवलोकन १५३ जा सकता है-पार्श्व की परंपरा से, पूर्वज्ञान की परंपरा से जो लेश्या का सिद्धान्त चला आ रहा था, महावीर ने उसे अपनाया। वस्तुतः पूर्वो का ज्ञान इतना विशाल था कि उसमें दुनियां का सारा ज्ञान समाविष्ट था। लेश्या का सिद्धान्त पार्श्व की परंपरा से चला आ रहा था और पार्श्व के ज्ञान की सारी विरासत महावीर की परंपरा को मिली, यह कहने में कोई कठिनाई नहीं होती। किन्तु इसके अतिरिक्त किसी अन्य परंपरा से-वैदिक, बौद्ध या आजीवक परंपरा से इस सिद्धान्त को लिया है, ऐसा नहीं कहा जा सकता। हालांकि इन सब परंपराओं में रंगों का वर्णन मिलेगा, क्योंकि रंगों को छोड़कर कोई धर्मशास्त्र चल नहीं सकता। प्रत्येक धर्मशास्त्र में रंगों के आधार पर कुछ न कुछ कहा गया है किन्तु लेश्या का जितना विकास जैन परंपरा में हुआ है उतना किसी अन्य परंपरा में नहीं हुआ। यह बात भी स्वीकार की जा सकती है-लेश्या एवं कर्म ये दो सिद्धान्त ऐसे हैं, जिन पर जैनों का एकाधिकार रहा है और ये जैनों की मूल देन हैं। दर्पण है लेश्या __ लेश्या-आभामण्डल हमारा एक दर्पण है, जिसमें व्यक्ति अपने आपको देख सकता है, अपने विचारों और भावनाओं को देख सकता है, अपने आचार और व्यवहार को देख सकता है। ___महान् दार्शनिक और तत्त्ववेत्ता सुकरात का चेहरा बहुत भद्दा था फिर भी वे दर्पण में बहुत बार अपना चेहरा देखते रहते थे। जब जब सुकरात दर्पण के सामने खड़े होकर अपना चेहरा देखते, उनके शिष्य हंसने लगते किन्तु सुकरात को कुछ नहीं कह पाते। ___गुरु की कई बातें ऐसी होती हैं, जो शिष्यों की समझ में नहीं आती किन्तु गुरु से पूछने का साहस भी नहीं होता । कुछ व्यक्ति श्रद्धा से उस बात को समाप्त कर देते हैं किंतु सब में श्रद्धा भी गहरी नहीं होती। ऐसे लोग पीछे से हंसते हैं या आलोचना करते हैं। उनमें इतनी क्षमता नहीं होती कि वे गुरु से ऐसे विषयों पर पूछ सकें और मन में उठ रहे विकल्पों को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003053
Book TitleApna Darpan Apna Bimb
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages258
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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