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अपना दर्पणः अपना बिम्ब मुनि बने थे तब वे एक शाटक में ही बने थे । यह कह दिया जाता है-महावीर जब दीक्षित हुए तब उन्होंने कंधे पर एक वस्त्र डाल लिया पर वस्तुतः महावीर एक शाटक परंपरा में दीक्षित हुए थे। एक शाटक का अर्थ यही हो सकता है कि थोड़ा सा लज्जा का निवारण हो जाए। हारिद्राभिजाति में श्वेत वस्त्रधारी
और निर्वस्त्र मुनियों को लिया गया है। उससे यह लगता है-उस समय भी श्वेत वस्त्रधारी मुनि थे और उनकी एक परंपरा थी । बौद्ध भिक्षु नीलाभिजाति में, आजीवक शुक्लाभिजाति में और आजीवकों के आचार्य थे परम शुक्लाभिजाति
में।
कहां है लेश्या का सिद्धान्तः
___ यह वर्गीकरण लेश्या के सिद्धान्त के साथ कहां मेल खाता है? थोड़े नाम अवश्य मिल गए हैं पर यह लेश्या का सिद्धान्त बिल्कुल नहीं है। इन रंगों के आधार पर संप्रदायों का एक वर्गीकरण अवश्य हो गया। नीलाभिजाति बौद्ध भिक्षु हैं। अमुक रंग वाले एक शाटक निग्रंथ हैं और अमुक रंग वाले आजीवक हैं। एक प्रकार से सारे संप्रदायों को कपड़ों के आधार पर बांट दिया गया अथवा अपनी धारणा के आधार पर संप्रदायों को बांट दिया गया। इसे लेश्या का सिद्धान्त कैसे कहा जा सकता है? प्रोफेसर ल्यूमेन और डाक्टर हर्मन जेकोबी ने इस आधार पर यह कह दिया-महावीर ने लेश्या का सिद्धान्त आजीवकों से लिया है। इसे लेश्या का सिद्धान्त कैसे कहा जा सकता है?
महावीर का लेश्या सिद्धान्त
महावीर ने जिस लेश्या सिद्धान्त का प्रतिपादन किया, वह दो धाराओं में चलता है। एक धारा है भाव की और दूसरी धारा है रंग की। भाव और रंग-इन दोनों का योग, यह है लेश्या का सिद्धान्त। यह अध्यात्म का महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है। लेश्या को छोड़कर अध्यात्म की बात नहीं कही जा सकती । अकेला लेश्या का सिद्धान्त ऐसा है, जो अध्यात्म की दिशा में बहुत महत्त्व
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