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________________ लेश्या : भावधारा १४३ ही नहीं आता । वह पकड़ में कैसे आएगा? जो काम मन का नहीं है, हम उसका आरोपण मन पर कर रहे हैं । हमें मन से आगे पहुंचना होगा, लेश्या के स्तर पर, भावना के स्तर पर पहुंचना होगा। उस स्तर को पकड़ कर ही हम समस्या का समाधान कर सकते हैं। पूरे आचार शास्त्र और व्यवहार शास्त्र की मीमांसा भावना के स्तर पर की जा सकती है । आज विज्ञान की एक पूर्ण शाखा बन गई-मनोविज्ञान (साइकोलॉजी)। यह बहुत प्रामक शब्द बन गया है । हमारे आचरण और व्यवहार की व्याख्या मन के स्तर पर नहीं की जा सकती। यदि हम मन के स्तर पर उसकी व्याख्या करेंगे तो प्रांति के चक्रव्यूह में फंस जाएंगे। जैसे मनोविज्ञान विज्ञान की एक शाखा है वैसे ही एक नई शाखा का विकास होना चाहिए । लेश्या है भाव विज्ञान लेश्या का मतलब है भावविज्ञान | पहला नंबर होना चाहिए भाव विज्ञान का और दूसरे नंबर पर रहना चाहिए मनोविज्ञान । हम भाव विज्ञान को छोड़कर मनोविज्ञान के आधार पर अपने व्यक्तित्व का अंकन करना चाहेंगे तो प्रांतियां बढती चली जाएंगी । आज मनोविज्ञान के संदर्भ में जो चल रहा है, क्या हम उसे आंख मूंद कर मान लें? स्वीकार कर लें? ऐसा करना ठीक नहीं होगा। हमारे पास ज्ञान और चिन्तन की बहुत बड़ी राशि है और वह हमें विरासत में मिली है। हम इसका उपयोग करें और मनोविज्ञान के सामने इस बात को प्रस्तुत करें - मनोविज्ञान के आधार पर व्यक्तित्व का जो अंकन किया जाता है, उसकी जो चिकित्सा की जाती है, वह तब तक सफल नहीं होगी जब तक भावना का बल उसके साथ नहीं जुड़ेगा । मनोविज्ञान की सफलता के लिए भावविज्ञान का मूल्यांकन और उपयोग अनिवार्य है। भावना का चमत्कार राजलदेसर के एक भाई ने कहा-महाराज ! मेरा बारह साल का एक लड़का छह माह से बहुत बीमार था। मैं छह माह से इसका इलाज करा रहा हूं पर कुछ भी लाभ नहीं हुआ । चलना तो दूर की बात है, वह उठ भी नहीं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003053
Book TitleApna Darpan Apna Bimb
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1999
Total Pages258
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Spiritual, & Discourse
File Size9 MB
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