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आज मेरे हाथ में 'श्रमणसूत्र' की पुस्तक है । यह एक ऐतिहासिक ग्रन्थ है । यह भगवान् महावीर की पच्चीसवीं निर्वाण - शताब्दी के अवसर पर समग्र जैन समाज के द्वारा मान्य ग्रन्थ है । इस ग्रन्थ के संकलन में हमारे संघ का बहुत बड़ा हाथ है। जिनेन्द्रवर्णी ने इसका प्रारम्भ किया और इसकी सम्पन्नता गुरुदेव तुलसी के निर्देशानुसार मेरे द्वारा हुई । एक संगीति हुई | उस संगीति में यह ग्रन्थ सबके द्वारा मान्य हुआ और आज यह जैन धर्म का सर्व-सम्मत ग्रन्थ है ।
मंगल सूत्र
विनोबाजी की भावना थी कि जैसे वैदिकों में गीता तथा बौद्धों में धम्मपद है, वैसे ही जैनों में भी एक ग्रन्थ होना चाहिए, जो सर्व सम्मत हो । उस अवसर पर यह भावना पूरी हुई। एक बहुत बड़ा ऐतिहासिक कार्य हुआ । अभी राधाकृष्ण बजाज आए, उन्होंने कहा - 'समणसुत्त' कई विश्वविद्यालयों में पाठ्य पुस्तक के रूप में स्वीकृत हो चुका है । जिनवाणी का सार इस ग्रंथ में संग्रहीत है ।
आवश्यक है विवेक
यतिभोज का यह श्लोक जिनवाणी के विषय में बहुत मार्मिक है'एकाप्यनाद्याऽखिलतत्त्वरूपा, जिनेशगीर्विस्तरमाप तर्कैः । तत्राप्यसत्यं त्यज सत्यमङ्गीकुरु स्वयं स्वीयहिताभिलाषी ।'
जिनवाणी एक है । वह सब तत्त्वों का निरूपण करने वाली अनादि वाणी है, फिर भी उसका इतना विस्तार हो गया कि उसमें बहुत सारी बातें मिल गईं। गंगोत्री का निर्मल जल जहां से प्रवाहित होता है, बहुत साफ
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