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से जिसके मन में मोक्ष की कोरी स्थूल कल्पना जाग रही है, उसे अधम, अधमतर कुछ भी कहा जा सकता है। उत्तम उसे माना गया है, जो व्यक्ति नकुल के लिए प्रयत्न करता है, न सुख सुविधा के लिए करता है । जिसका लक्ष्य केवल मोक्ष पाना है, वह व्यक्ति उत्तम होता है । जिस आधार पर वर्गीकरण किया गया है, उस आधार पर उत्तम वही होता है, जो मोक्षलक्षी है, आत्मलक्षी है ।
संदर्भ मंगल का
हम मंगल शब्द का निदर्शन लें । विवाह का प्रसंग । दीप जलाया । विवाह का प्रसंग है इसलिए कहा जाएगा - दीप जलाना बड़ा मांगलिक कार्य है | दीप जलाना मंगल बन गया । प्रसंग है अहिंसा का । कोई दीप जलाएगा तो कहा जाएगा - यह मंगल नहीं है । मंगल तो अहिंसा है- 'धम्मो मंगल मुक्किट्ठे ।' अहिंसा संजमो तवो ।' अहिंसा मंगल है, दीप जलाना मंगल नहीं है। हर शब्द संदर्भ के साथ अपना तात्पर्य देता है। जहां लौकिक मंगल का संदर्भ है वहां दूध भी मंगल है, दही भी मंगल है | नारियल भी मंगल है, अक्षत भी मंगल है | ये सब मंगल बन जाते हैं । किन्तु जहां आत्मा का संदर्भ है, वहां न धूप मंगल है, न दीप मंगल है। वहां मंगल है आत्मा का पवित्र भाव, सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान, और सम्यक् चारित्र ।
निक्षेप का तात्पर्य
निक्षेप की पद्धति में मंगल के दो भेद किये गए - द्रव्य मंगल और भाव मंगल । लौकिक मंगल द्रव्य मंगल है । भाव मंगल आत्मा का स्वरूप है । निक्षेप का तात्पर्य है प्रत्येक विचार को संदर्भ के साथ समझने का प्रयत्न | संदर्भ को काट कर तत्त्व के अर्थ को समझने का प्रयत्न करोगे तो कुछ भी पल्ले नहीं पड़ेगा । विपरीत अर्थ का ग्रहण भी हो जायेगा । इसलिए सर्वत्र संदर्भ को प्रस्तुत करना होता है । निक्षेप का अर्थ ही अप्रस्तुत को हटा देना और प्रस्तुत को सामने रखना होता है । प्रस्तुत है मोक्ष | मोक्षशास्त्र की दृष्टि से सारा विचार किया जा रहा है । जब सामने लक्ष्य मोक्ष है, उसे
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जैन धर्म के साधना -सूत्र
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