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की सीमा में घिरा रहेगा तब तक वह संदेहों के घेरे में रहेगा | जब वह सूक्ष्म नियमों को जानने लगेगा, सारे संदेह मिटते चले जाएंगे । बहुत सारे चमत्कार, जिन्हें आम आदमी चमत्कार मानता है, एक वैज्ञानिक के लिए कोई चमत्कार नहीं होते, क्योंकि वह नियमों को जानता है । स्थूल जगत् से परे
हम स्थूल जगत् के नियमों को स्थूल जगत् के संदर्भ में देखें, सूक्ष्म जगत् के नियमों को सूक्ष्म जगत् के संदर्भ में देखें । जो व्यक्ति स्थूल जगत् के बटखरों से सूक्ष्म जगत् को तोलना चाहता है, वह सदा भ्रान्ति में रहता है । सम्यग् दृष्टि वह होता है, जो स्थूल जगत् के नियमों को स्थूल जगत् में और सूक्ष्म जगत् के नियमों को सूक्ष्म जगत् में लागू करता है । जब आत्मा परमात्मा बन जाती है तब उसका स्थूल जगत् के नियमों से संबंध टूट जाता है । उस स्थिति में केवल अस्तित्व रहता है और अस्तित्व पर व्यक्तित्व का नियम लागू नहीं होता। प्रश्न है आनंद का
एक बड़ा प्रश्न है- जब परमात्मा कर्ता नहीं है तो वह अनंतकाल तक बैठा-बैठा क्या करेगा ? क्या उसे ऊब और थकान नहीं आएगी? इस प्रश्न का होना स्वाभाविक है । हम हलचल भरे जीवन को ज्यादा पसंद करते हैं। हमने यह मान लिया है- तोड़-फोड़ करना, लड़ना-भिड़ना, इधर-उधर की करते रहना, यही जीवन का आनंद है। हमें इसमें रस है, इसलिए हम शेष को नीरस मान लेते हैं। हमें इस नियम का पता नहीं चलता- अपने अस्तित्व में होना परमात्मा होना है, परम आनन्द में होना है ।
जो लोग मोक्ष के संदर्भ में ऐसा प्रश्न उठाते हैं, वे निगोद के संदर्भ में इस प्रश्न को क्यों नहीं उठाते ? एक एकेन्द्रिय जीव अनंतकाल तक उसी अवस्था में रहता है, अव्यक्त जीवन जीता है । क्या वह एक ही अवस्था में रहता हुआ थकता नहीं है ? जीव अनंतकाल तक निगोद में रहता है । यदि वह अनंतकाल मोक्ष में रह जाए तो कौनसी बड़ी बात है ? कोई सीमातीत नहीं है
आत्मा और परमात्मा
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