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गुण हों- अनुग्रह करना और निग्रह करना, न्याय को प्रोत्साहन देना और अन्याय का प्रतिकार करना । जैन दर्शन का परमात्मा नेतृत्व के गुण से भी रहित है । फिर कोई आदमी ऐसे परमात्मा की पूजा और भक्ति क्यों करेगा? जो उदासीन, मध्यस्थ या तटस्थ है, उससे व्यक्ति का क्या हित सधेगा ? विशुद्ध आत्मा
ईश्वर के साथ, परमात्मा के साथ जो कर्तृत्व की बात जोड़ी गई है, वह बड़ी विवादास्पद है । हम जिसे ईश्वर या परमात्मा माने और उसके साथ कर्तृत्व को जोड़ें, यह बड़ा अटपटा-सा लगता है । जहां ईश्वर के साथ कर्तृत्व को जोड़ा, वहां हमने ईश्वर को अपनी भूमिका पर उतार दिया, एक सामान्य आदमी बना दिया । ईश्वर एक विशुद्ध आत्मा है, राग-द्वेष मुक्त आत्मा है । उसका आसन ऐसा होना चाहिए कि वह सबके लिए समान हो और सब उसके लिए समान हो । जिसके ज्ञान-दर्शन पर कोई आवरण नहीं रहा, जिसके कार्य में कोई विघ्न और बाधा नहीं रही, जिसे विश्व का कोई तत्त्व प्रभावित नहीं कर सकता, जो सर्वथा अप्रभावित हो गया और अपने आनन्द में लीन हो गया, वह है- परमात्मा । उसके साथ कर्तृत्व की बात को जोड़ना संगत प्रतीत नहीं होता।
सूक्ष्म जगत् : स्थूल जगत्
परमात्मा पर स्थूल जगत् के नियम लागू नहीं होते । सूक्ष्म जगत् के नियमों से जुड़ा होता है- परमात्मा | स्थूल जगत् और सूक्ष्म जगत् के नियम अलग-अलग होते हैं । एक व्यक्ति के सामने दो चीजें पड़ी हैं- एक है सूक्ष्म बाल, दूसरा है-काठ का बड़ा टुकड़ा । व्यक्ति के हाथ में उन्हें काटने के लिए कुल्हाड़ी है । व्यक्ति कुल्हाड़ी चलाएगा तो काठ का बड़ा टुकड़ा कट जाएगा पर बाल नहीं कटेगा । जिस कुल्हाड़ी से काठ कट सकता है, उससे छोटा-सा बाल नहीं कट सकता । क्योंकि स्थूल जगत् के नियम सूक्ष्म पर लागू नहीं होते । हम स्थूल जगत् के नियमों से परिचित हैं किन्तु सूक्ष्म जगत् के नियमों को नहीं जानते । इसी कारण आत्मा और परमात्मा के विषय में बहुत सारे प्रश्न और संदेह पैदा होते हैं । जब तक आदमी केवल स्थूल नियमों
जैन धर्म के साधना-सूत्र
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