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शोधन की प्रक्रिया में इस बात पर ध्यान दिया गया- इंद्रियां भी नियंत्रित
और संतुलित होनी चाहिए। उसके बाद अहंकार पर ध्यान दिया गया । जब तक अहंकार है तब तक अतीत का शोधन नहीं हो सकता, विनम्रता और सेवा-भावना विकसित नहीं हो सकती । इसी क्रम में कहा गया-शोधन करना है तो कुछ नया ज्ञान बढ़ना चाहिए, निर्मलता बढ़नी चाहिए । निर्मलता के साथ एकाग्रता और निर्विकल्पता का अभ्यास भी परिपक्व बनना चाहिए । ऐसी स्थिति बने कि विचार आए ही नहीं । इस शोधन की प्रक्रिया की अन्तिम बात है- विसर्जन । व्यक्ति दुनियां से अपने आपको अलग कर ले । वह दुनिया के बीच रहते हुए भी अपने आपको अकेला बना ले । यह ध्यान की निष्पत्ति है, तपस्या का अन्तिम परिणाम है | शोधन का यह क्रम है और इस क्रम से मनोवृत्ति को बदला जा सकता है । यह परिवर्तन की प्रक्रिया है । इसका माध्यम है- तपस्या और निर्जरा । इसी माध्यम से हम अपने नए व्यक्तित्व का निर्माण कर सकते हैं ।
मनोवृत्ति को बदला जा सकता है
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