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________________ दोनों जरूरी हैं स्वास्थ्य के लिए दोनों बातें जरूरी हैं- मन का निरोध और शोधन । दवा से शोधन हो सकता है पर निरोध के लिए अपनी आतंरिक शक्ति, प्राणशक्ति ज्यादा कारगर होती है | केवल निरोध ही निरोध हो या केवल शोधन ही शोधन हो तो हस्ति-स्नानवत् कार्य हो जाएगा । निरोध और शोधन-दोनों साथ-साथ चलें तभी पूरी प्रक्रिया बनती है । एक ओर निरोध की प्रक्रिया को अपनाएं तो दूसरी ओर शोधन की प्रक्रिया को भी अपनाएं । शोधन के लिए तपस्या बहुत आवश्यक है । हम निर्जरा और तपस्या को दो भी कह सकते हैं । वे दोनों एक भी हैं । तपस्या के द्वारा निर्जरा होती है इसलिए निर्जरा को ही तप मान लिया गया । वास्तव में मानना चाहिए थासंवर और तपस्या । किन्तु तपस्या के स्थान पर निर्जरा को मान लिया गया । तपस्या संवर और निरोध का भी उपाय है, शोधन का भी उपाय है । ध्यान : संवर भी, निर्जरा भी ध्यान एक तपस्या है | ध्यान करना संवर भी है, निर्जरा भी है । एक व्यक्ति ध्यान करता है तो वह अपने शरीर की प्रवृत्ति का निरोध करना चाहता है। हम यह मानकर चलें, पूर्ण निरोध हमारे वश की बात नहीं है । वह अपने आप होता है | जितनी आंतरिक शुद्धि होगी उतना ही निरोध होगा । संवर का आंतरिक शुद्धि से बहुत संबंध है । निरोध की प्रक्रिया हमारी आंतरिक प्रक्रिया है । तोड़ने की प्रक्रिया प्रयत्न के साथ चलती है । हम इस भाषा में कह सकते हैं- आंतरिक शुद्धि है निरोध, बाहरी अच्छी प्रवृत्ति है तपस्या या निर्जरा । हम जितनी तपस्या करते हैं उतनी ही निर्जरा होती चली जाती । परम पुरुषार्थ है निवृत्ति __ ध्यान एक निवृत्ति है । हम ध्यान में मन को एकाग्र करने का प्रयास करेंगे तो गर्मी बहुत बढ़ जाएगी। मन को चलाने में जितना पुरुषार्थ करना पड़ता है, मन को एकाग्र करने में उससे अधिक पुरुषार्थ करना पड़ता है । प्रवृत्ति करना सरल है, निवृत्ति करना बहुत कठिन है | ध्यान के लिए बहुत मनोवृत्ति को बदला जा सकता है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003052
Book TitleJain Dharma ke Sadhna Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size10 MB
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