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दीर्घकाल की दृष्टि से सोचें - मैं जो खा रहा हूं, उसका शरीर पर क्या प्रभाव होगा ? मुझे जल्दी बूढ़ा बनना पड़ेगा, बीमारियां घेर लेंगी। यदि इसी प्रकार प्रत्येक कार्य की दोनों दृष्टियों से मीमांसा की जाए तो आदमी का आचार अपने आप स्वस्थ बन जाता है । वह ऐसे किसी आचरण को करना नहीं चाहेगा, जिससे अप्रतिष्ठा, दुःख, प्रतिकूल संवेदन, अल्प आयु को भोगना पड़े। इस जागरूकता को जगाना ही ध्यान का प्रयोजन है । आदमी में मूर्च्छा है, मूढ़ता है इसलिए वह जानते हुए भी गलत काम कर लेता है । यदि वह जागरूक है तो संभल जाएगा । इसीलिए ध्यान के साथ-साथ जागरूकता के सूत्रों को समझना जरूरी है। आश्रव, बंध, पुण्य और पाप - ये चार ऐसे सूत्र हैं, जिनके द्वारा जागरूकता को बहुत आगे बढ़ाया जा सकता है ।
वह ज्ञाता होना चाहता है
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