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________________ ने बहुत सुन्दर कारण बतलाया- जो व्यक्ति दूसरों को दुःखी बनाता है, शोक संतप्त करता है, उसके असातवेनीय कर्म का बंध होता है । जब असातवेदनीय कर्म का विपाक होता है तब सब कुछ मिलने पर भी चैन नहीं मिलता ! सातवेदनीय : अनुकंपा का भाव ___ एक व्यक्ति, जिसमें अनुकंपा का भाव है, वह सबको आत्मवत् समझता है, किसी को सताना नहीं चाहता, दूसरों को सताने में प्रकंपन होता है । वह सोचता है- दूसरों को नहीं, अपने आपको सता रहा हूं। जब यह अनुकंपा का भाव जागता है तब सातवेदनीय कर्म का बंध होता है । जब सातवेदनीय कर्म का विपाक होता है, कुछ न होने पर भी आदमी सदा सुखी रहता है । हमने ऐसे लोगों को देखा है, जिनके पास सुख का कोई साधन नहीं है किन्तु वे इतनी मस्ती और आनंद डूबे रहते हैं कि उन्हें देखकर किसी भी व्यक्ति को ईर्ष्या हो जाए । उनकी प्रसन्नता का कारण है- सातवेदनीय कर्म का उदय । धन मिल जाना ही पुण्य का उदय नहीं है । मैंने बड़े बड़े धनपतियों को अपनी आंखों के सामने रोते हुए देखा है | उनके दुःख-पूर्ण रुदन को देखते ही दया आ जाए । सुखी होने का संबंध है सात वेदनीय कर्म से और सुख का परिपाक होता है अनुकंपा का जीवन जीने से । जो व्यक्ति क्रूरता का जीवन जीता है, वह कभी सुखी नहीं हो सकता । आज सामाजिक जीवन में मनुष्यों के प्रति, पशुओं के प्रति भयंकर क्रूरता है । वर्तमान युग में मानसिक तनाव की समस्या प्रबल बन रही है । अनुकंपा कम हो और क्रूरता ज्यादा हो तो मानसिक तनाव क्यों नहीं होगा ? दृष्ट-जन्म वेदनीय : अदृष्ट-जन्म वेदनीय ___ वेदनीय कर्म का विपाक दो प्रकार से होता है । कुछ कर्म दृष्ट-जन्म वेदनीय होते हैं और कुछ कर्म अदृष्ट-जन्म वेदनीय होते हैं । कुछ कर्म ऐसे होते हैं, जिनका इस दृष्ट जीवन, वर्तमान जीवन में ही परिपाक आ जाता है। ऐसा लगता है मानसिक तनाव या मानसिक बीमारियां दृष्ट-जन्म वेदनीय का परिपाक हैं और ये मानवीय क्रूरता के कारण बढ़ती चली जा रही हैं। बोया बीज बबूल का, आम कहां से होय ? २०९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003052
Book TitleJain Dharma ke Sadhna Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size10 MB
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