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________________ सम्मान नहीं मिलता । इसका कारण है-व्यक्ति ने आत्म-प्रशंसा और परनिन्दा करते-करते कुछ ऐसा अर्जन किया है, जिसका कुछ ऐसा परिपाक आया है कि सब कुछ मिलने पर भी प्रतिष्ठा उसके भाग्य में नहीं होती । कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं, जो दूसरों के गुणों का आच्छादन करते हैं, उन्हें छिपाना चाहते हैं और अवगुणों को खुला बांटना चाहते हैं । ऐसा करने वाला व्यक्ति भी नीचगोत्र कर्म का अर्जन करता है, अप्रतिष्ठा का बीज बोता है । व्यक्ति बीज बोता है- अप्रतिष्ठा का और चाहता है-प्रतिष्ठा, यह कैसे संभव है ? राजस्थानी कहावत है-बोया बीज बबूल का, आम कहां से होय ? बबूल का बीज बोने से आम कैसे पैदा होगा ? जब सुख और प्रतिष्ठा का बीज ही नहीं बोया है तो वह कहां से आएगा ? आदमी की आदत है दूसरों की अच्छाइयों को ढकना और बुराइयों को प्रकाशित करना | इसका परिणाम है- नीचगोत्र का अर्जन या अप्रतिष्ठा की उपलब्धि । इसलिए वह प्रतिष्ठा चाहते हुए भी अप्रतिष्ठा को पा लेता है | कर्म का प्रभाव : निदर्शन हम दूसरा उदाहरण लें । दो व्यक्तियों ने भागीदारी में व्यापार किया । लाभ की स्थिति में भी घाटा लगने लगा, घाटा निरन्तर बढ़ता चला गया । एक भागीदार ने सोचा- मुझे हट जाना चाहिए । उसने अपनी भागीदारी समाप्त कर दी । दुकान केवल एक व्यक्ति के हिस्से में रह गई। वह मालामाल हो गया । इसका कारण क्या है ? वही दुकान है, वही परिस्थिति है किन्तु घाटा ही नहीं मिटा, धन बरस पड़ा । इसका हेतु क्या है ? अतीत में जाने पर पता चलेगा-अंतराय कर्म के बंध के कारण ऐसा हुआ । एक व्यक्ति ने अंतराय कर्म का बंध किया, दूसरों के कार्य में बाधाएं ही बाधाएं डाली। वे परिपक्व होकर उसकी प्रतिक्रिया के रूप में प्रस्तुत हो गईं। व्यक्ति को लगता है- जो भी करता हूं, उसमें विघ्न ही विघ्न आते हैं, हर कार्य उल्टा कार्य होता है | यदि यह बात समझ में आए तो आदमी वर्तमान जीवन में किसी के सामने विघ्न और बाधाएं उपस्थित करना नहीं चाहेगा, उसका आचार बदल जाएगा। बोया बीज बबूल का, आम कहां से होय ? २०७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003052
Book TitleJain Dharma ke Sadhna Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size10 MB
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