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गया, पर एक अवस्था आती है, जीव अमूर्त बन जाता है । वह सर्वथा अमूर्त नहीं है । प्रत्येक देहधारी प्राणी एक अवस्था से मूर्त्त है, शरीर से जुड़ा हुआ है ।
अनादिकालीन संबंध
प्रश्न हुआ - जीव शरीर के साथ कब से जुड़ा हुआ है ? उत्तर दिया गया जब से जीव है तब से वह शशीर के साथ है । ऐसा कोई काल नहीं रहा, जिसमें जीव रहा किन्तु शरीर नहीं रहा । जीव कब से शरीरधारी है, उसका कोई पता नहीं है । कहा जा सकता है - जीव और शरीर का यह संबंध अनादिकाल से चला आ रहा है। यदि पुद्गल के साथ आत्मा का संबंध माना जाए तो मुक्त आत्मा के साथ भी पुद्गल का संबंध मानना होगा । जो आत्मा शरीर से मुक्त है, उसके साथ भी संबंध मान्य करना होगा किन्तु उनके बीच संबंध नहीं है। पुद्गल पुद्गल है, आत्मा आत्मा है। पूरे लोक में जीव और पुद्गल व्याप्त हैं, किन्तु दोनों में कोई संबंध नहीं है । न पुद्गल से मुक्त - आत्मा प्रभवित होती है और न मुक्त - आत्मा से पुद्गल । हम इस निष्कर्ष पर पहुंचे - जीव और पुद्गल में संबंध स्थापित नहीं किया गया । किन्तु वह प्राकृतिक रूप से, नैसर्गिक रूप से चला आ रहा है। जो प्राकृतिक होता है, उसमें तर्क नहीं होता ।
स्रोत है योग
एक प्रश्न है - जीव और पुद्गल के बीच जो संबंध है, वह चल कैसे रहा है ? उसका एक स्रोत है । जो शरीर आत्मा के साथ जुड़ा हुआ है, वह निरन्तर अपनी सुरक्षा कर रहा है। उसने ऐसे स्रोत बना लिए हैं, जिनसे निरन्तर रस प्रांत हो रहा है । उसे पोषण देने वाला, चिजीवी बनाने वाला जो तत्त्व है, उसका नाम है - आश्रव । वह निरन्तर पुद्गलों को खींच रहा है, अपने आपको पुष्ट बना रहा है, कभी क्षीण नहीं होने दे रहा है । शरीर ने अपने साथ दो तत्त्व और प्राप्त कर लिए हैं - वाणी और मन | इन तीनों का योग बन गया, जो निरन्तर उसका पोषण कर रहे हैं । इसे पारिभाषिक
यह दुःख कहां से आ रहा है ?
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