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होगी-वह ज्ञाता, जो अमूर्त भी है, मूर्त भी है, आत्मा भी है, जीव भी है, जो भारहीन भी है, द्रव्यमान वाला भी है और चैतन्यमय है,उस ज्ञाता को जानना है । यदि हम उसे जानने के लिए बौद्धिक व्यायाम या तर्क का सहारा लेंगे तो अधिक दूर तक नहीं पहुंच पाएंगे । यदि हमें ज्ञाता को जानना है तो संत बनना होगा, वीतराग चेतना का विकास करना होगा । उसका सबसे बड़ा माध्यम है--ध्यान, इन्द्रिय-प्रतिसंलीनता । यदि यह तथ्य समझ में आ जाए तो ज्ञाता को जानने का संकल्प पूरा हो सकेगा, उसे जानने का रास्ता भी आसान बन पाएगा।
वह ज्ञाता होना चाहता है
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