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आंके | यह कोई सामान्य बात नहीं है । आत्मकल्याण और परकल्याण की इससे बड़ी दूसरी कोई साधना नहीं है । जीवन में समता उतर आए तो फिर किसी बात की जरूरत नहीं रह जाती, कुछ पाना शेष नहीं रह जाता ।
शान्ति पूर्ण जीवन का सूत्र ___ जीवन में बहुत सी परिस्थितियां आती हैं । कभी लाभ हो जाता है, कभी हानि । सुख-दुःख जीवन-मरण, इस प्रकार की हजारों स्थितियां आती हैं, जाती हैं, कभी-कभी एक दिन में ही न जाने कितनी स्थितियां आ जाती हैं। इन स्थितियों में सम न रहें, इनके अनुसार चलायमान होते रहें, आन्दोलित होते रहें तो बड़ी विषम स्थिति उत्पन्न हो जाएगी | अच्छा जीवन जीने का सूत्र यही है कि हर स्थिति में शान्त रहें और शान्त वही रह सकता है, जिसने सामायिक की साधना की है । यह तो नहीं कहा जा सकता कि सामायिक करने वाला हर आदमी वीतराग बन जाएगा, किन्तु इससे इतना जरूर होगा कि वह ऐसी जीवनशैली अपना लेगा, ऐसे मार्ग पर अपने चरण बढा लेगा, जहां समता की सिद्धि उसे प्राप्त हो जाएगी । जिसने समता साध ली, जिसके जीवन में उच्चावच भाव नहीं रहा, उससे बड़ा आदमी इस दुनिया में दूसरा
और कोई नहीं होगा । व्यावहारिक जीवन में उससे ज्यादा सुखी आदमी दूसरा नहीं हो सकता । जिसकी समता सिद्ध हो जाती है, वह जीने-मरने से भी प्रभावित नहीं होता । आचार्य भिक्षु के जीवन में यह समता सिद्ध हो चुकी थी, सामायिक पक गई थी इसीलिए वे लाभ-अलाभ, सुख-दुःख और जीवनमरण में तटस्थ रह पाए । - पूज्य गुरुदेव ने अपने जीवन के बारे में बड़ी मार्मिक बात लिखी है | एक तरह से वह सामायिक की सिद्धि से निकला हुआ स्वर है । आपने लिखामैंने अपने जीवन में जितना सम्मान पाया, उतना शायद बहुत कम लोग पाते हैं और जितना अपमान देखा, उतना बहुत कम लोग देखते हैं । रायपुर में लोगों ने देखा- कितने पुतले जलाए गए थे। कोरा सम्मान ही सम्मान मिलता तो अहंकार आने को बड़ी संभावना थी और कोरा अपमान ही अपमान मिलता तो हीनभावना से ग्रस्त हो जाने की बड़ी संभावना थी। सम्मान और अपमान
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जैन धर्म के साधना सूत्र
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