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________________ पुनरावर्तन भी करते थे । इतनी विशाल ज्ञानराशि कि आज उसकी कल्पना भी दुरूह-सी लगती है । कम्प्यूटर बेचारा उनके सामने अत्यन्त बौना प्रतीत होता है । बूंद और सागर की स्थिति रहती है । इतने विशाल ज्ञान को मस्तिष्कीय कोशों में संचित कर रखना, आवश्यकतानुसार उसका उपयोग करना महान् आश्चर्य है। आज भी ऐसे उपाध्यायों की आवश्यकता है जिनकी स्मृति का विकास चरम शिखर पर हो । विशेषज्ञ बनें हमारी तेरापंथ की परंपरा में आचार्य ही उपाध्याय का कार्य सम्पादित करते हैं, आचार्य ही उपाध्याय होता है । मैं चाहता हूं कि आचार्य का एक ऐसा सहयोगी उपाध्याय हो, जो ज्ञान को अपने में समेटे हुए चले । इसके लिए आज एक नया शब्द व्यवहृत हुआ है,वह शब्द है 'विशेषज्ञ' । वह विशेषज्ञ ऐसा हो, जो आत्मविद्या की परंपरा का संवहन करे, उसे विकसित करे । उस परम्परा की विच्छित्ति न हो, यह उसका दायित्व होना चाहिए उपाध्याय का इसीलिए महत्त्व है कि आत्मविद्या के वे पूरे संरक्षक होते हैं । इसीलिए महामंत्र में आचार्य के पश्चात् उपाध्याय को नमस्कार किया गया है-'णमो उवज्झायाणं ।' णमो उवज्झायाणं १०३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003052
Book TitleJain Dharma ke Sadhna Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year
Total Pages248
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size10 MB
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